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श्रथ जैनम्मियोंकी तीर्थयात्रा वर्णन करते हैं। दिल्ली आगरेसे दक्षण दिशाके तीर्थोकी कमसे प्रथम सिद्धक्षेत्रोंके नाम॥ फिर इन क्षेत्रों में मुक्त नए मुनिजनोंकी सं; ख्या ॥ फिर अतिशय क्षेत्रोंके नामः॥ और इनके मार्गमें जो जो मंदिर तथा जो जो चैत्यालय श्रावते है। उनकी संख्या॥और जिसनगरमें वा जिसग्राममें श्रावकोंके जितनी जातके घर आवेंगेउनकी अंदाज संख्या॥और रस्तेमें बड़े छोटे नगर आयेंगेउनके नाम। जहां रेल बदलेगी उस ग्रामका वा नगरका नाम ॥ और जिस नगरका वा नामका टिकट लेवेंगे उसका नाम ॥ रस्तेमें जो वस्तु खानेकी आदि चाहिए सो जिस नगरमें जैनी श्रावक होवे उनकीमारफत लेवे तो सोधकी अच्छी मिलेगी। और गाडी घोडा आदि जाडे करना होवे तो इनकी मारफत करे तो फायदा रहेगा॥और सर्व बातकी जुम्में दारी इनकी रहेगी। इस यात्राके रस्तेमें जाडेके दिनों में ठंड बहुत कमती पड़ती है सो आधसेर रूईकी एक रजाई लेवे ॥ कमरी एक रूईकी लेवे ॥ बिछानेको.जो चाहिए सो लेवे । और जिस नगरमें बडी प्रतिमा होवेगी उसकी ऊंचाइ चौडाईकी जहांकी प्रमाणकी संख्या लिखेंगेसो दुलीचंदके हाथकी जाननी । अब सिद्धक्षेत्रोंके नाम लिखते हैं। बडवानि १ सिद्धवरकूट २ मुक्तागिरि३ मांगीतुंगी,