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रह जाता है कि स्त्रीशिक्षा न होनी चाहिए। और और देशोंकी स्त्रियां कितने उचे दरजेपर पहुच गई हैं कि जिन्हें देखकर प्रत्येक स्त्रीशिक्षाका प्रेमी प्रसन्न हो सकता है। उनके लिखे हुए आज हजारों अच्छे अच्छे ग्रंय है जिन्हें देख कर अच्छे अच्छे विद्वान् आश्चर्य प्रगट करते हैं। मारतकी नारियां भी अपनेमें वही शक्ति रखती है, परन्तु बुरा हो इस अविद्याका जिसने उनकी शक्तिको ढक दिया है । प्रत्येक देशहितैपीको सबसे पहले स्त्रीशिक्षापर अच्छी तरह ध्यान देना चाहिए । सब मुल्कजग गये हैं। जापान स्वर्गभूमिके समान सुख भोग रहा है । चीनने भी अपनी पिनक छोड़दी है। पर भारत-जगद्गुरुभारत-ही आज सबसे पीछे पड़ा हुआ है। क्यों ? केवल शिक्षाके न रहने से । प्यारो ! अत्र इस वातकी आवश्यक्ता है कि स्त्रीशिक्षाका खूब प्रचार किया जाय।
स्त्रियोंको शिता मिलनेसे कितना जल्दी सुधार होता है इस वातको वे लोग बहुत अच्छी तरहसे नान सकेंगे जिन्होंकी निगाह चीनको देखती रही है । आजसे दश वर्ष पहले चीनमें न समाजकी तरफसे और न सरकारकी ही तरफसे वियोंके लिये स्कूल या कालेज था। पर इस दश वर्षके अर्सेमें उन्होंके स्त्रीशिक्षाके प्रचारसे आज चीनके केवल एक प्रातमें ७१२ पाठशाला और कई एक कालेज स्थापित हैं। उनमे स्त्रियोंको इतिहास, साहित्य, गणित, सन्तानपालन, कलाकौशल आदि सभी विषयोंकी शिक्षा दी जाती है । उसीका आज यह फल दीख पड़ता है कि वहां की स्त्रियां संसारमें वह काम कर रहीं