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निर्जराभावना |
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इससे न बात करो इसे यहा न आनेदो इसको सतावो मारो क्योंकि दोषवान है, कपटी कलंकी कूर पापी अपराधी नीच कामी क्रोधी लोभी चोर कुक्रमोंकी खान है। " रखके विचार ऐसे लोग जो सतावें तो भी सहले विपत्तियोंको माने ऋणदान है, गिरिधर धर्म पाले किसीसेन वाधे वैर तपसे नसावे कर्म वही ज्ञानवान है ।
लोकभावना ।
बाकी कर कोन्हियोंको जरा पात्र दूरे रख आदमीको खडाकर गिरिधर ध्यान धर, चतुर्दश राजू लोक ऐसा ही है नराकार उसमें भरे है द्रव्य छहों सभी स्थानपर। एकेंद्रिय द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय त्यों पचेन्दिय सज्यसंज्ञी पर्याप्तापर्याप्त कर, भरे ही पडे है जीव पर सत्र चेतन है स्वानुभव करें त्यो त्यों पावे मोक्षधाम वर ।
वोधिदुर्लभभावना |
एक एक श्वासमें अठारे अठार वार मर मर घरें देह जग जीव जानलो. बड़ी ही कठिनतासे निकले निगोदसे तो अगणित बार भमे भव भव मानलो । दुर्लभ मनुष्य भव सर्वोत्तम कुल धर्म पाये हो गिरघर तो सत्य तत्त्व छानलो, होकर प्रमाद वश कालक्षेप करो मत सबकी भलाई करो निजको पिछानलो ।
धर्मभावना |
बाहरी दिखावटोंको रहने न देता कहीं सारे दोष दूर कर सुख उपजाता है, काम क्रोध लोभ मोह राग द्वेप माया मिथ्या तृष्णा मद मान मल सबको नसाता है । तन मन वाणीको बनाता है
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