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रना । हे नाथ ! जैसी स्थिति अब है उसे बहुत समयतक रहने देना यह सारे धर्मका नाश करना है । इस लिए आप, रक्षा करनेवाले अपने हाथोंको अव चलाइये उनसे काम लीजिए। अपनी सत्यवाणीरूप अमृतका हमें पान कराइये । हमारी आखोंका पटल दूर कीनिए । अज्ञानके समुद्र में गोता खानेवाले हमारे भाइयो - अपने नालकोंपर कृपादृष्टि कीजिए। इस भरतमें इस हृदयमन्दिरमें पधारनेके लिए हमारी प्रार्थना स्वीकार कीजिए ।
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हमारे कर्त्तव्यकी समाप्ति |
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हम जैनी है । हमे अपने जैनी होनेका बड़ा अभिमान है । हमसे कोई पूछता है कि तुम कौन हो ? तब उसे हम बड़े गर्व - के साथ उत्तर देते है कि हम जैनी हैं । पूछनेवाला जब हमसे हमारे धर्मके समझने की इच्छा प्रगट करता है तब हम उसे समझाते है कि हमारा धर्म वडा पवित्र है, ससारमें हमारे धर्मके बराबर पवित्र और आत्मकल्याणका मार्ग बतानेवाला कोई दूसरा धर्म नहीं है। उसमें कहा गया है कि कभी पापकर्म मत करो, संसारके छोटे और बड़े सब जीवोंके साथ मित्रता करो, कभी किसी नीवकी हिंसा मत करो, हिंसा तो दूर रहे, कभी उन्हें छोटी से छोटी श्री तकलीफ न पहुंचाओ, जिस तरह हो सके, जितना हो सके, दूसरोंका उपकार करो । किसीका, चाहे वह फिर तुम्हारा जानी दुश्मन भी क्यों न हो, अनिष्ट - अपकार - मत करो, न करना तो दूर रहे, पर कभी अपने भावोंमें भी किसीके बुराईकी भावना - विचार - न करो। राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया और लोभ ये आत्माके जानी
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