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उपाधिप्रदान-प्रातःस्मरणीय स्याद्वाद वा. पं. गोपालदासनीकी अपूर्व जैनसिद्धान्तज्ञतापर मुग्ध होकर कलकत्ता कालेनके श्रीशतीशचन्द्र महामहोपाध्याय आदि प्रसिद्ध विद्वानोंने उन्हें न्यायवाचस्पतिकी उपाधि प्रदान की है । पंडितनीका मिन्नधर्मिर्यो द्वारा यह अपूर्व सम्मान देखकर यह कहे बिना नहीं रहा जाता कि गुण ना हिरानो गुणगाइक हिरानो है। यही तो कारण था कि जैनसमाओंके द्वारा दी हुई पदवीसे चिढ़कर कुछ अनुदार लोगोंने आकाश पाताल एक कर दिया था । सच है, चिरन्तनाभ्यासनिवन्धनेरिता गुणेषु दोषेषु च जायते मतिः । जिसका जैसा अभ्यास होता है वह काम मी वैसा ही करता है।
च्याइका स्वांग-बम्बई प्रदेशमें रुतवी नामकी एक जाति है। इस मातिमें प्रति दस या वारह वर्ष वाद न्याह होता है । गत शनिवारको सूरतमें इस जातिमें चार सौ व्याह हो गये । केवल एक दुलहनकी अवस्था वारह वर्षसे अधिक थी, अधिक दुलहने एकसे स्यारह वर्षके भीतर ही की थीं। दूलहोंकी अवस्था तीनसे नौ वर्षतक थी। विवाहके समय अधिकांश वरवधू अपनी माता पिताकी गोदमें बैठे थे। जिसमें वे रोवें चिल्लायँ नहीं इसलिये उन्हें लडडू पढ़े खिलाये गये थे!
लश्कर ( गवालियर ) में जैन लायब्रेरीकी स्थापना हुई है। वहांके उत्साही नव युवकोंको धन्यवाद है।
जयपुर-से मी एक नवीन जैनपत्रका जन्म होना सुना गया है। कन होगा ! यह नाननेकी उत्कण्ठा है।
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