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________________ अर्थ-अन्य द्रव्य के द्वारा अन्य द्रव्य के गुणों की उत्पत्ति नही की जाती है इस कारण मे सम्पूर्ण द्रव्य अपने स्वभाव मे ही उत्पन्न हुआ करते है। इस गाथा का उल्लेख प० फूलचन्द्रजी ने जनतत्त्वमीमासा के पृष्ठ ६५ पर किया है तथा इसके द्वारा उन्होंने निमित्तो को कार्य के प्रति अकिचित्कर वनाने का प्रयास भी किया है जिसकी निरर्थकता पर आगे विचार किया जाता है। पं० जी के उक्त प्रयास की निरर्थकता उक्त गाथा का भाव यह है कि निमित्तभूत अन्य द्रन्म उपादानभूत द्रव्य मे ऐसी विशेषता पैदा नही कर सकता है जिसकी योग्यता (उपादानशक्ति) उसमे विद्यमान न हो । जैसे मिट्टी मे घटरूप परिणत होने की उपादान शक्ति पायी जाती है तो वह मिट्टी कुम्हार आदि यथायोग्य निमित्त का सहयोग मिलने पर घटस्प परिणत हो जाया करती है और कि उस मिट्टी में पटरूप से परिणत होने की योग्यता (उपादान शक्ति ) नही पायी जाती है इसलिये पटरूप परिणति के निमित्तभूत जुलाहा आदि का सहयोग प्राप्त होने पर भी वह पटरूप कदापि परिणत नही होती है। गाथा का दूसरा भाव यह है कि उपादानभूत वस्तु ही विवक्षित कार्यरूप परिणत होती है निमित्तभूत वस्तु नहीं। जैसे मिट्टी का स्वभाव ही घटरूप परिणत होने का है अतः मिट्टी ही घटरूप परिणत होती है कुम्हार, चन भादि कभी घटरूप परिणत नहीं होते।
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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