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अनुकूल अन्य पदार्थ का सहयोग मिलने पर ही होता है और वस्तु के स्वभाव मे उसकी अपनी स्वत सिद्ध योग्यता ( उपादानशक्ति) के आधार पर जो परिणमन होता है वह दो प्रकार से हुआ करता है । अर्थात् वस्तु स्वभाव का कोई परिणमन तो उसके अनुकूल अन्य पदार्थ का सहयोग प्राप्त होने पर ही होता है और कोई परिणमन स्वत ( अपने-आप अर्थात् अन्य पदार्थ के सहयोग की अपेक्षा के विना ) ही हुआ करता है । इस तरह परिणमन के दो भेद हो जाते हैं - एक स्वसापेक्ष परिणमन और दूसरा स्वपरसापेक्ष परिणमन । स्वसापेक्ष परिणमन को आगम में स्वसापेक्ष परनिरपेक्ष अथवा परनिरपेक्ष परिणमन भी कहा गया है और स्वपरसापेक्ष परिणमन को परसापेक्ष परिणमन भी कहा गया है । स्वसापेक्ष परिणमन को स्वप्रत्यय और स्वपरसापेक्ष परिणमन को स्वपरप्रत्यय अथवा परप्रत्यय परिणमन भी आगम मे कहा गया है । इनमे से ऊपर कहे अनुसार वस्तु के द्रव्यपरिणमन तो स्वपरसापेक्ष ही हुआ करते है और वस्तु के गुणपरिणमनो मे से कोई परिणमन तो स्वसापेक्ष होते हैं और कोई परिणमन स्वपरसापेक्ष हुआ करते है । यहा इतना ध्यान रखना चाहिये कि वस्तु अथवा वस्तु के स्वभाव का कोई भी परिणमन स्वनिरपेक्ष परसापेक्ष नही होता, जैसा कि आगे स्पष्ट किया जायगा ।
परिणमन की स्वसापेक्षता और स्वपरसापेक्षता का अभिप्राय
जिसमे या जिसका परिणमन होता है यानि जो परिणत होता है वह 'स्व' कहलाता है । इसे उपादानकारण भी कहते है । इसकी अपेक्षा रचसापेक्षपर निरपेक्ष और स्वपरसापेक्ष दोनो ही प्रकार के परिणमनो मे रहा करती है । जो परिणमित तो न