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________________ २७ इसका अर्थ स्वय प० फूलचन्द्रजी ने यह किया है कि पर्याये दो प्रकार की होती हैं-एक स्वपरसापेक्ष और दूसरी परनिरपेक्ष । इस प्रकार ऊपर किये गये विवेचन से यह बात अच्छी तरह स्पष्ट हो जाती है कि प्रत्येक वस्तु के कोई-कोई परिणमन उस वस्तु की स्वत सिद्ध परिणमनशीलतारूप योग्यता के कार्य होते हुए भी जब तक निमित्तो का सहयोग वस्तु को प्राप्त नही होता तब तक वे परिणमन उत्पन्न नहीं होते है। एक प्रश्न और उसका समाधान यद्यपि प० फूलचन्द्र ने जैनतत्त्वमीमासा मे कार्यकारणभाव की उक्त निमित्तनैमित्तिक स्थिति को स्वीकार किया है, परन्तु उनका कहना है कि वस्तु के जिस परिणमन का जब स्वकाल आ जाता है तब वह परिणमन उस काल मे नियम से होता है । इसलिये वे "जब तक अनुकूल निमित्तो का सहयोग प्राप्त नही होगा तब तक स्वत सिद्ध परिणमनशीलतारूप योग्यता का सद्भाव रहते हुए भी वस्तु का स्वपरसापेक्षपरिणमन नही होगा" इस कथन पर यह प्रश्न उपस्थित करना चाहेगे कि यदि निमित्तो के अभाव मे स्वत सिद्ध परिणमनशील वस्तु का परिणमन रुक सकता है तो फिर उसकी स्वत सिद्ध परिणमनशीलता का क्या उपयोग रह जायगा ? इसके उत्तर मे मेरा कहना यह है कि उस समय भो एक तो वहा पर उस वस्तु का परनिरपेक्ष परिणमन होता रहेगा, दूसरे उस समय जो अन्य अन्य निमित्तो का सहयोग उस वस्तु को प्राप्त रहेगा उनके बल पर उसके स्वपरसापेक्ष परिणमन के
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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