SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ उनका यह कहना भी निर्विवाद है, परन्तु जहा प० जी का यह कहना है कि वस्तु विवक्षित परिणमन से अव्यवहित पूर्वक्षणवर्ती पर्याय मे कालक्रम से अपने-आप पहुँच जाती है वहा अनुभव, युक्ति और आगम के आधार पर आगे यह बतलाया जायगा कि उनका यह कथन केवल वस्तु के स्वप्रत्यय परिणमन के सम्बन्ध मे ही लागू होता है वस्तु के स्वपरप्रत्यय परिणमन के सम्बन्ध मे नही, क्योकि आगे स्पष्ट किया जायगा कि वस्तु का विवक्षित स्वपरप्रत्यय परिणमन भी यद्यपि स्वप्रत्यय परिणमन की तरह उससे अव्यवहित पूर्वक्षणवर्ती पर्याय मे वस्तु के पहुँच जाने पर हो होता है, परन्तु वस्तु विवक्षित स्वपरप्रत्यय परिणमन से अव्यवहित पूर्वक्षणवर्ती पर्याय में अनुकूल परवस्तु की सहायता से ही पहुँच सकती है स्वप्रत्यय परिणमन की तरह काल क्रम से अपने-आप नही और न उसके अनन्तर होने वाला वह कार्य भो अपने-आप होता है । यद्यपि प० फूलचन्द्रजी का कहना है कि जिस प्रकार वस्तु के त्रैकालिक स्वप्रत्ययपरिणमन केवलज्ञान मे युगपत् प्रतिभासित होते हैं उसी प्रकार वस्तु के त्रैकालिक स्वपरप्रत्यय परिणमन भी केवलज्ञान मे युगपत् प्रतिभासित होते है अत वस्तु के स्वप्रत्यय परिणमनो की तरह वस्तु के स्वपरप्रत्यय परिणमनो मे भी काल की नियत पर्याय से सम्बद्ध रहने के कारण नियतपना सिद्ध होता है, परन्तु प० जी ने स्वयं ही जनतत्त्वमीमासा मे इसके विरुद्ध कथन किया है जैसा कि वे जैतत्त्वमीमासा के पृष्ठ २६१ पर लिखते हैं 1 " यद्यपि हम मानते है कि केवलज्ञान को सब द्रव्यो ओर उनकी सब पर्यायो का जानने वाला मान कर भी क्रमवद्ध
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy