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________________ ३७८ पृष्ठ पक्ति शुद्धि ६२ للل Mruwrxy ९५ ६६ ६७ ६७ ६७ अशुद्धि दर्शन को दर्शन का आगम के आगम मे प्रतिभास न प्रतिभासन रहते हुए रहते हुए भी निर्णित निर्णीत पर व्यवसायात्म परव्यवसायात्मकता का का दर्शन का सद्भाव पदार्थ दर्शन का सद्भाव पाँच प्रकार पाँच प्रकार का जो जिसमे जिसमे आत्मान परम आत्मन परम् अर्थज्ञान अर्थ ज्ञान इन्द्रियो मे किसी इन्द्रियो मे से किसी भी इन्द्रिय द्वारा इन्द्रिय द्वारा पदार्थ आकार का पदार्थ के आकार का होने होने वाले होने वाले केवय ज्ञान मे और केवलज्ञान मे और चूँकि ये और ये तीनो ज्ञान तीनो ज्ञान पदार्थ दर्शन का पदार्थ दर्शन का असद्भाव सद्भाव प्रत्येकज्ञानदर्शनके प्रत्येक ज्ञान दर्शन के उदासीन रूप से उदासीन रूप से ही निमित्त निमित्त ही अखण्डता के अखण्डता को लिये हुए लिये हुए ६७ ६८ ११ हद १०० १०३ १०४
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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