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________________ प० फूलचन्द्र जी ने प० प्रवर टोडरमल जी के इस कथन के विषय मे अपना मन्तव्य भी वही पर यह लिखा है कि "यह पण्डित प्रवर टोडरमल जी का कथन है मालूम पडता है कि उन्होने " तादृशी जायते बुद्धि." इत्यादि श्लोक मे प्रतिपादित तथ्य को ध्यान मे रखकर ही यह कथन किया है इसलिये इसे उक्त अर्थ के समर्थन मे ही जानना चाहिये । इस विषय मे मेरा कहना यह कि प० फूलचन्द्र जी प० प्रवर टोडरमल जी के उल्लिखित कथन से जो अर्थ फलित कर रहे है वह ठीक नही है क्योकि मैं वतला आया हूँ कि जैन दर्शन मे केवल भवितव्य से कार्य सिद्धि न मानकर भवितव्य और पुरुषार्थ दोनो के परस्पर सहयोग से कार्य सिद्धि मानी गयी है । इसलिये जैन दर्शन की इस मान्यता को ध्यान में रखकर ही प० प्रवर टोडरमल जो के कथन का आशय निकालना चाहिये । बात यह है कि प० प्रवर टोडरमल जी के उक्त कथन से यह तो प्रगट होता नही कि कार्य की सिद्धि केवल भवितव्य से ही हो जाती है उसमे पुरुषार्थ अपेक्षित नही रहता है । वे तो अपने उक्त कथन से इतनी ही बात कहना चाहते हैं कि कितने ही उपाय करते जावो यदि भवितव्य अनुकूल नही है तो कार्य की सिद्धि नही हो सकती है । लेकिन इससे यह निष्कर्ष तो कदापि नही निकाला जा सकता है कि यदि भवितव्य अनुकूल है तो बिना पुरुषार्थ के ही कार्य की सिद्धि हो सकती है । जैसे मैं पहले कई स्थलो पर स्पष्ट कर चुका हूँ कि मिट्टी मे पट बनने की योग्यता नही है तो जुलाहा आदि निमित्त सामग्री का कितना ही योग मिलाया जावे उससे पट का निर्माण नही होगा, फिर
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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