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________________ ३२६ सम्यक्चारित्र आदि नामो से पुकारे जाने वाले आत्मलीनता रूप सम्यक्चारित्र मे अणुव्रत-महाव्रत आदि कारण होते हैइस तरह मोक्ष की परम्परया कारणता का तत्त्वार्थ श्रद्धान, आगमज्ञान व अणुव्रत-महाव्रत आदि मे सद्भाव है अत वे निरर्थक ( अकिञ्चित्कर ) भी नही है अतएव ही तत्त्वार्थ श्रद्धान को व्यवहार सम्यग्दर्शन, आदि नामो से, आगमज्ञान को व्यवहार सम्यग्नान आदि नामो से और अणुव्रत-महावत आदि को व्यवहार सम्यक्चारित्र आदि नामो से व तीनो को सामूहिक रूप मे व्यवहार रत्नत्रय, व्यवहार धर्म का व्यवहार मोक्षमार्ग आदि नामो से पुकारा जाता है। प० फूलचन्द्रजी, प.. जगन्मोहनलालजी और उनके सपक्षीजन कहते है कि "कुम्भकार मिट्टी से निर्मित होने वाले घट के निर्माण मे अकिञ्चिकर है इसलिए निमित्तकारण आदि नामो से पुकारा जाता है। इसी तरह तत्त्वश्रद्धान, आगमज्ञान और अणुव्रत-महानत आदि मोक्ष की उपलब्धि मे अकिञ्चित्कर है इसलिए तत्त्व श्रद्धान को व्यवहार सम्यग्दर्शन आदि नामो से, आगमज्ञान को व्यवहार सम्यग्ज्ञान आदि नामो से और अणुव्रत-महाव्रत आदि को व्यवहार सम्यक्चारित्र आदि नामो से तथा सामूहिक रूप मे व्यवहार रत्नत्रय, व्यवहार धर्म या व्यवहार मोक्ष मार्ग आदि नामो से पुकारा जाता है" परन्तु उनका ऐसा मानना मिथ्या है क्योकि मिट्टी से उत्पन्न होने वाले घट के निर्माण मे कुम्भकार के और निश्चय स्वरूप उपर्युक्त रत्नत्रयो से उत्पन्न होने वाले मोक्ष की प्राप्ति मे व्यवहार स्वरूप उपर्युक्त रत्नत्रयो के प० फूलचन्द्रजी की मान्यता के अनुसार अकिञ्चित्कर हो जाने से उनमे उपचार का ऊपर बतलाया गया लक्षण घटित नही होता है।
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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