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नाम
पृ० स०
क्र० स० ३६- निश्चयधर्म और उपादान कारण की
वास्तविकता व व्यवहारधर्म और निमित्त कारण की उपचरितता का अभिप्राय
६७- उपचार का विवेचन
३२४
३८- उपचार अर्थ मे होता है शब्द उसका
प्रतिपादक है
३६- अर्थ और शब्द के प्रकार तथा शब्द द्वारा
अथ प्रतिपादन का नियमन
३३६
४० उपचरित अथ लक्ष्यार्थ और व्यग्यार्थ से भिन्न
शब्द का अभिधेयार्थ ही है
४१- कार्योत्पत्ति मे पच कारण समवाय का
अभिप्राय
४२- "तादृशी जायते बुद्धि." इत्यादि पद्यवत
स्पष्टीकरण
४३- प० प्रवर टोडरमल के मोक्षमार्ग प्रकाशक के
उद्धरण का अभिप्राय