SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्र. स पृ. स. ३२. अन्य विवध प्रकार से निमित्त को कार्यकारिता का समर्थन २३६ ३३- निमित्त की कार्यकारिता व व्यवहाररत्नत्रय की धर्म रूपता का समर्थन तथा व्यवहार रत्नत्रय का निश्चयरत्नत्रय के साथ साध्यसाधक भाव २६४ ३०६ ३४- (क) योगरूप परिणमन क्रियावती शक्ति का ही होता है (ख) योग कर्मों के आस्रवित होने या प्रकृतिबन्ध और प्रदेशबन्ध होने के कारण है ३०६ (ग) योगो का कषाय (राग-द्वप) से अनुरजित होना स्थिति बन्ध और अनुभाग बन्ध का कारण है मोह (ज्ञान की अज्ञानरूपता) कर्मबन्ध का साक्षात् कारण नहीं होता किन्तु कपाय को प्रभावित करता हुआ परपरया कारण होता है ३०६ ३५- पापाचरण, पुण्याचरण, व्यवहार धर्म और निश्चय धर्म मे अन्तर
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy