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________________ २७६ जलादि निमित्त सामग्री के सहयोग से होते हुए देखे जाते है । यद्यपि यह बात ठीक है कि मिट्टी से स्थूल रूप मे स्थास के अनन्तर कोश और कोश के अनन्तर कुशलपर्याय की उत्पत्ति हो जाने पर ही घट की उत्पत्ति होने का नियम देखा जाता है परन्तु यह बात निर्विवाद ही मानी जानी चाहिये कि दो पर्यायो के मध्य पाया जाने वाला आनन्तर्य कभी भी कार्यकारणभाव का नियामक नही हो सकता है। जैसे कृत्तिका नक्षत्र के उदय के पश्न त् शकट नक्षत्र का उदय नियम से हुआ करता है और यही कारण है कि कृत्तिका नक्षत्र का उदय आगे शकट नक्षत्र के उदय का ज्ञापक है परन्तु इससे यह निष्कर्ष तो नही निकाला जा सकता है कि कृत्तिका नक्षत्र का उदय शकट नक्षत्र के उदय मे कारण होता है। इसी प्रकार यद्यपि मिट्टी की स्थास, कोश, कुशूल और घटपर्यायो की उत्पत्ति मे उत्तरोत्तर आनन्तर्य पाया जाता है परन्तु इन सबकी उत्पत्ति निमित्तभूत कुम्भकार, दण्ड, चक्र व जलादि सामग्री के सहयोग से ही होती है। यही कारण है कि स्थास के पश्चात् ही कोश, कोश के पश्चात् ही कुशूल और कुशूल के पश्चात् ही घट की उत्पत्ति होने का नियम रहने पर भी ऐसा नियम नही है कि स्थास के पश्चात् कोश की, कोश के पश्चात् कुशूल की और कुशूल के पश्चात् घट की उत्पत्ति होती ही है। इस तरह प० जगन्मोहनलालजो ने जो यह लिखा है कि 'निमित्त का विकल्प छोडकर प्रत्येक ससारी जीव को अपने उपादान की ही सम्हाल करनी चाहिये" सो इसमे उपादान की सम्हाल करने की बात तो ठीक है परन्तु ऊपर के कथन से उपादान की सम्हाल करने का सहारा तो निमित्त सामग्री ही सिद्व होती है अत निमित्त का विकल्प छूट कैसे सकता है ?
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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