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________________ २५७ जिसके अनुकूल निमिन सामग्री का सहयोग उस पूर्वपर्याय को प्राप्त होता है तथा इसके साथ हो यदि वाधक कारण की उपस्थिति वहाँ हो जाती है तो वह पर्याय भी उत्पन्न न होकर वही पर्याय उत्पन्न होती है जिसके अनुकूल निमित्त सामग्री का सद्भाव और वाधक कारण का अभाव वहाँ उपस्थित रहता है अत इसमे वस्तु क परिणमन के रुकने की सम्भावना ही नही है। प० फूलचन्द्र जी और प० जगन्मोहनलाल जी का कहना है कि समर्थ उपादान से एक नियत कार्य की उत्पत्ति होती है। इसके लिए जेन तत्वमोमासा मे स्वामो कार्तिकेय की निम्नलिखित गाथा को प्रमाण रूप से उद्धृत किया गया है पुवपरिणामजुत्तं कारणभावेण बट्टदे दव्व । उत्तरपरिणामजुदंत चिय कज्ज हवे णियमा ॥२३०।। इसका अर्थ प० फूलचन्द्र जी ने यह किया है कि अनन्तर पूर्व परिणाम से युक्त द्रव्य कारणरूप से प्रवर्तित होता है और अनन्तर उत्तर परिणाम से युक्त द्रव्य वही द्रव्य नियम से कार्य होता है। यद्यपि इस अर्थ मे कोई विवाद नही है, परन्तु इसका अभिप्राय प० फूलचन्द्र जी यह लेते है कि वस्तु जिस समय कार्याव्यवहितपूर्व पर्याय मे पहुँच जातो है तब उसमे एक नियत कार्य के उत्पन्न होने की योग्यता आ जाती है तब वही कार्य नियम से उत्पन्न होना है। इस तरह उसके लिए न तो निमित्त सामग्री की अपेक्षा रहती है और न वहाँ पर बाधक कारण ही
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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