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________________ २४४ ना नामिनि उगोग गगनगनगी मान्य निगिन की प्रतिनिागापानी जाना। पही गा अन्य मा मेना गालि कि मिट्टी में घट निर्माण रोग प्रनि पुनमगार निमित होने पर भी यदि TETरमन मै गनिमांन अगर पुरमा पग्ने नी प्रेताना नानीमा जान नारी होती. या घटनिमांग अनुान यहाई माया निमित गामग्री हा वाशित नही गती। अगवा निर्माण प्रविन चाना मानः उरिणत गाती नोमोहाना में उस समय निमांनी गोपना पिलिष्टमी मे गट निर्माण कदापि नहीं होगा। इसी प्रकार पाने की मांगना विशिष्ट मनुष्य पटन माग प्रमियो निमिन होने पर भी यदि मनुष्य मी मला पवन गी नहीपा पहने अनुन मन्त्र गोई गयर निगित गागनी उपलानी अपया पन रूप व्यापार के प्रतियन वाफ मागी यहाँ उपस्थित तो ऐसी हालत में मनुष्य का पठन पप्यापार नही होगा। तात्पर्य यह है कि उपादान तारण और तिमी एक या अनेगा निमित्त कारणोंगे मदार में भी यदि एा या अनेक अन्य गरगोगी निमितो का अभाव रहता है अथवा उपादान कारणता यिनिष्ट सन्तु को गम्पूर्ण निमित्त सामग्री पी अनुगमता प्राप्त रहने पर भी यदि कोई बाधत सामग्री या सयोग प्राप्त हो जाता है तो उग हालत में भी कारणो की ममग्नता विरामान न रहने के गारण अथवा मपूर्ण साधन सामग्री के सद्भाव के साथ-साथ याधन सामग्री गा भी सद्धार रहने के कारण
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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