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________________ २४३ कर सकती है जिसके उत्पन्न होने की योग्यता (नित्य उपादान शक्ति) उस अन्य वस्तु मे विद्यमान नही है, फिर भी यह बात निश्चित है कि उक्त परिणमनरूप कार्य यदि स्वपरप्रत्यय स्वभाव वाला है तो वह कभी भी अनुकूल निमित्तो के सहारे के बिना उत्पन्न नही हो सकता है। जैसे घटरूप परिणमन की योग्यता (नित्य उपादान शक्ति) मिट्टी में विद्यमान है तो कुम्भकार के द्वारा उस मिट्टी से घट का निर्माण किया जाता हआ देखा जाता है, लेकिन जब उस मिट्टी मे घटरूप परिणमन करने की योग्यता विद्यमान नही है तो तन्तुवाय के द्वारा उस मिट्टी से पट का निर्माण किया जाता हुआ कभी नही देखा जाता है। इतना अवश्य है कि घट मिट्टी की स्वपरप्रत्यय पर्याय होने के कारण जव तक कुम्भकार दण्ड, चक्र आदि आवश्यक साधन सामग्री के सहयोग से मिट्टी के घटरूप परिणमन के अनुकूल अपना पुरुषार्थ (व्यापार) नही करता है तब तक उस मिट्टी से घट का निर्माण होना असभव ही बना रहता है। इसी प्रकार मनुष्य मे पढने की योग्यता विद्यमान है तो दीपक के प्रकाश मे वह पढता है, लेकिन किसी मनुष्य मे यदि पढने की योग्यता ही विद्यमान नहीं है तो दीपक का प्रकाश रहते हए भी वह मनुष्य हमेशा पढने में असमर्थ ही रहा करता है। इतना अवश्य है कि पढना उस मनुष्य की स्वपरप्रत्यय पर्याय होने के कारण जब तक पढने के अनुकूल प्रकाश का सहयोग पढने की योग्यता रखने वाले उस मनुष्य को प्राप्त नही होगा तब तक वह मनुष्य पढने में असमर्थ ही रहेगा। यही कारण है कि प० जगन्मोहन लाल जी को भी अपने उल्लिखित लेख मे मनुष्य के पढने रूप कार्य मे दीपक की निमित्तता का समर्थन करना पडा है । लेकिन उन्हे मालूम
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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