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________________ २४१ के साथ निमित्त सामग्री के समागम पूर्वक ही हुआ करते हैं । इतना ही नही, परिणमन के अनुकूल उपादान शक्ति विशिष्ट द्रव्य को जब और जहा जैसा निमित्त सामग्री का समागम प्राप्त होता है वैसा ही परिणमन उस द्रव्य का हुआ करता है । जैसे खानि मे पडी हुई मिट्टी मे यदि घडा आदि के निर्माण के अनुकूल पिंड का रूप धारण करने की स्वभावतः योग्यता विद्यमान है तो उसकी जानकारी होने पर कुम्भकार उस मिट्टी को खानि से अनुकूल निमित्तो के सहयोग से घर लाकर अनुकूल निमित्तो के सहयोग से ही उसे पिंड रूप मे परिवर्तित करता है और तब वह कुम्भकार अपनी इच्छा से अथवा दूसरे व्यक्ति की प्रेरणा से उस पिंडरूप परिणत मिट्टी से स्व और पर की आवश्यकतानुसार घडा, सकोरा आदि विविध प्रकार की वस्तुयें उसमे पायी जाने वाली स्वभावभूत उपादान शक्ति के आधार पर अनुकूल साधनो के सहयोग से बनाता चला जाता है । अर्थात् कुम्भकार तो घडा, सकोरा आदि के निर्माण के अनुरूप स्वकीय व्यापार करता जाता है और उसके सहारे से घडा, सोरा आदि वस्तुये अपने रूप मे मिट्टी मे पायी जाने वाली योग्यता के अनुसार बनती चली जाती है । वास्तव में यह बात अनुभवसिद्ध भी है कि निमित्तो की अनुकूलता के अनुसार अपनी अपनी उपादान शक्ति के बल पर प्रत्येक द्रव्य का एक क्षणवर्ती अथवा अनेक क्षणवर्ती स्वपरप्रत्यय परिणमन सतत हुआ करता है । इतना ही नही, जैसाजैसा परिवर्तन जब-जब निमित्त सामग्री मे होता जाता है तबतब वैसा ही परिवर्तन द्रव्यो के स्वपर प्रत्यय परिणमन मे भी उनकी उपादान शक्ति के बल पर होता जाता है ।
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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