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का तथा करणानुयोग को दृष्टि से निषेधरूपता निश्चय का और विधिरूपता व्यवहार का विकल्प है । द्रव्यानुयोग और करणानुयोग दोनो मे से द्रव्यानुयोग का विषय निश्चयरूप और करणानुयोग का विषय व्यवहाररूप है । इसी तरह करणानुयोग चरणानुयोग दोनो मे करणानुयोग का विषय निश्चयरूप और चरणानुयोग का विषय व्यवहाररूप है और इसी तरह चरणानुयोग और प्रथमानुयोग दोनो मे चरणानुयोग का विषय निश्चय रूप व प्रथमानुयोग का विषय व्यवहाररूप है । व्यष्टिप्रधान आध्यात्मिक दृष्टि से प्रवृत्ति व्यवहार का और निवृत्ति निश्चय का विकल्प है यथा समष्टि प्रधान लौकिक दृष्टि से प्रवृत्ति निश्चय का और निवृत्ति व्यवहार का विकल्प है । द्रव्यानुयोग की दृष्टि मे सत् और असत्, तत् और अतन्, नित्य और अनित्य, एक और अनेक, अभिन्न और भिन्न तथा अवक्तव्य और वक्तव्य के विकल्पो मे पूर्व पूर्व का विकल्प निश्चय का और उत्तर-उत्तर का विकल्प व्यवहार का है । करणानुयोग की दृष्टि मे कर्म के उदय, उपशम, क्षय और क्षयोपशम के आधार पर होने वाली आत्मा की अवस्था व्यवहाररूप है और कर्म से अनपेक्ष आत्मा की स्वत सिद्ध अवस्था निश्चय रूप है । इसी तरह कर्म के उदय के आधार पर होने वाली आत्मा की औदयिक रूपता विभावरूप व्यवहाररूपता है, कर्म के क्षयोपशम के आधार पर होने वाली आत्मा की क्षायोपशमिकरूपता विभाव और स्वभाव के मिश्रणरूप व्यवहाररूपता है तथा कम के उपशम या क्षय के आधार पर होने वाली आत्मा की ओपशमिक रूपता और क्षायिकरूपता स्वभावरूप निश्चयरूपता है । चरणानुयोग की दृष्टि मे आत्मा के दर्शन, ज्ञान और चारित्र की स्थिति मोहकर्म के उदय से प्रभावित होने के आधार पर मिथ्यादर्शन,