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देने से इनका समाधान हो जाता है । शास्त्रो मे बतलाया गया है कि योग के निमित्त से प्रकृति बन्ध और प्रदेश बन्ध होता है | अब थोडा इस कथन पर विचार कीजिये कि क्या योग सामान्य से कार्माणवर्गणाओ के ग्रहण मे निमित्त होकर ज्ञानावरणादिरूप से उनके विभाग मे निमित्त होता है या ज्ञानावरणादिरूप से जो कार्माणवर्गणाये पहले से अवस्थित हैं उनके ग्रहण मेनिमित्त होता है ? इनमे से पहली बात तो मान्य नही हो सकती है क्योकि कार्माणवर्गणाओ मे ज्ञानावरणादिरूप स्वभाव पैदा करने मे योग की निमित्तता नही है । जो जिस रूप मे है उनका उसी रूप मे ग्रहण हो - इसमे योग निमित्त होता है । "
इस कथन से प० फूलचन्द्रजी ने यह सिद्ध किया है कि ज्ञानावरणादि आठो कर्मों की कार्माणवर्गणाये अलग-अलग है और योग के निमित्त से आठो प्रकार की वर्गणायें अपने-अपने ज्ञानावरणादि नियतरूप रूप से आत्मा के साथ सम्बन्ध कर लेती हैं । इसकी पुष्टि मे उन्होने वीरसेन आचार्य का वर्गणाखड बन्धन अनुयोग द्वार चूलिका वाला कथन भी वहाँ पर उद्धृत किया है ।
प० फूलचन्द्रजी ने जो उक्त कथन किया है उसमे उनका अभिप्राय निमित्तभूत योग को ज्ञानावरणादि कर्मों की कार्माण वर्गणाओ का जीव के साथ बधने मे अकिचित्कर बतलाना है । परन्तु इस प्रकार वे अपने इस अभिप्राय की पुष्टि नही कर सके है । इसका स्पष्टीकरण निम्न प्रकार है
मै, जैसा कि ऊपर बतला दिया है, मानता हूँ कि ज्ञानावरण कर्म रूप परिणत होने की योग्यता रखने वाली कार्माणवर्गणा ही योग के निमित्त से आत्मा के साथ सम्बन्ध करके