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________________ सभी जीव अनादिकाल से पुद्गलो के साथ बद्धस्थिति को प्राप्त होकर ही रहते आये है लेकिन उनमे से जिन जीवो ने पुरुषार्थ द्वारा अपनी उस बद्धस्थिति को समाप्त कर अबद्धस्थिति को प्राप्त कर लिया है वे अब कभी बद्धस्थिति को प्राप्त नही होंगे। पुद्गलद्रव्यो मे यह विशेषता है कि कोई पुद्गल तो अनादिकाल से जीवो अथवा पुद्गलो के साथ वद्धस्थिति को प्राप्त हो रहे है और यदि उनकी वह बद्ध समाप्त भी हुई है तो पुनः बद्धस्थिति को प्राप्त हो गये है या हो सकते है। इसी प्रकार कोई पुद्गल अनादिकाल से अबद्धस्थिति को प्राप्त होकर भी रह रहे है परन्तु वे आगे चल कर यथायोग्य जीव अथवा पुद्गलो के साथ बद्धस्थिति को भी प्राप्त हुए है और आगे भी बद्धस्थिति को प्राप्त हो सकते है। इस प्रकार जोवो और पूद्गलो मे परस्पर जो विशेषतायें सम्भव है वे नीचे प्रकार है। (१) सभी अनन्तानन्त जीव अनादिकाल से यथायोग्य पुद्गलो के साथ बद्ध होकर ही रहते आये है जबकि समस्त पुद्गलो मे से वहत से पुद्गल तो अनादिकाल से जीवो अथवा दूसरे पुद्गलो के साथ बद्ध होकर रहते आये हैं और बहुत से अबद्ध होकर भी रहते आये है। (२) अनादिकाल से उक्त प्रकार से बद्धता प्राप्त सभी जीवो मे से बहत से जीवो ने आगे चलकर अपनी बद्धस्थिति को समाप्त कर दिया है और बहत से जीव अपनी उस वद्धस्थिति को समाप्त करते जा रहे है । इस तरह जीवो द्वारा अपनी वद्धस्थिति को समाप्त करने की इस प्रक्रिया का आगे चलकर कभी अन्त होने वाला नही है, लेकिन जिन जीवो ने अपनी वद्धस्थिति को समाप्त कर दिया है अथवा जो जीव अपनी बद्धस्थिति को समाप्त करते जा रहे हैं वे सब आगे चलकर
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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