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जैसा कि ससारी जीव पुद्गलद्रव्य के साथ मिल कर एक पिण्ड का रूप धारण किये हुए हैं और यही कारण है कि जिन जीवों ने साधनो की अनुकूलता प्राप्त न होने से अभी तक मुक्ति प्राप्त नही की है उन भव्यजीवो ओर सभी अभव्य जीवो को पुद्गलद्रव्य के साथ मिल कर एक पिण्डरूप स्थिति में विद्यमान रहने के कारण बद्ध और आकागादि सभी द्रव्यो के साथ स्पष्टरूप स्थिति मे रहने के कारण स्पृष्ट- इस तरह वद्धस्पृष्ट जीवद्रव्य मैंने कहना उचित समझा है ।
पुद्गलों का भी वद्धस्पृष्ट अवद्धस्पृष्ट रूप में विवेचन
पूर्व मे बतला दिया गया है कि जीवो मे वद्धता का कारण उनमे स्वत सिद्ध रूप से विद्यमान वैभाविकी शक्ति है और यह भी बतला दिया गया है कि यह शक्ति जिस प्रकार जीवो मे है उसी प्रकार पुद्गलो मे भी है । इस तरह जिस प्रकार जीवो को पुद्गलद्रव्य के साथ मिल कर एक पिण्डरूप स्थिति मे रहने के कारण वद्ध माना गया है उसी प्रकार पुद्गलद्रव्यो को भी जीवो के साथ अथवा अपने से भिन्न पुद्गलद्रव्यो के साथ मिलकर एक पिण्डरूप स्थिति मे रहने के कारण बद्ध माना गया है। इस तरह जिस प्रकार जीव बद्धस्पृष्ट और अवद्धस्पृष्ट दो भागो मे विभक्त है उसी प्रकार पुद्गलो को भी बद्धस्पृष्ट और अवद्धस्पृष्ट दो भागो मे विभक्त समझ लेना चाहिये ।
जीवों और पुद्गलों में बद्धस्पृष्टता और अबद्धस्पृष्टता के आधार पर विशेषता
जीवो और पुद्गलो मे बद्धस्पृष्टता और अवद्धस्पृष्टता के आधार पर इस प्रकार की विशेषता समझ लेनी चाहिये कि