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________________ ११४ अलग-अलग वहा बतलायी गयी है । अर्थात् "क्रतुं शक्यं क्रय्यम्" यह कय्य शब्द की व्युत्पत्ति है जिमका अर्थ होता है खरीदी के लिये दुकान मे रक्सी हुई वस्तु और "केतु योग्यम्" यह क्रय गब्द की व्युत्पत्ति है जिसका अर्थ होता है जो खरीद तो की जा सकती है पर खरीदी के लिये दुकान मे नहीं रखी गयी है जैसे घरेलू मामान । घरेलू सामान ऐसा नहीं होता कि वह कभी खरीदा ही नहीं जा सकता हो। परन्तु वह तब तक नहीं खरीदा जाता है जब तक उसे बेचने का उसके स्वामी ने सकल्प न किया हो । इस तरह एक भव्य वह है जिसमे मुक्त होने की योग्यता तो है परन्तु शक्यता नहीं है और एक भव्य वह है जिसमे मुक्त होने की शक्यता भी है। जो भव्य जीव अनादिकाल से अभी तक कभी सम्यग्दृष्टि नहीं हुए है उनमें भव्यत्व योग्यता रूप से ही रहा करता है तथा जिनको एक वार भी सम्यग्दर्शन प्राप्त होगया उनमे शक्यता रूप से भव्यत्व रहा करता है। यही प्रक्रिया सम्यग्दर्शन प्राप्ति या मिथ्यादर्शन के विनाश में समय लेना चाहिये । अर्थात् जिन भव्य जीवो को सम्यग्दर्शन की प्राप्ति या मिथ्यादर्शन के विनाश के अनकल करणलब्धि प्राप्त हो गयी हो उनमे भव्यत्व शक्यता रूप से रहता है और जिनको अनादिकाल से अभी तक कभी भी करणलब्धि प्राप्त न हुई उनमें योग्यता रूप से ही भव्यत्व रहा करता है। मव्यत्व और अभव्यत्व का शुद्धि शक्ति और ___ अशुद्धि शक्ति के रूप मे विवेचन स्वामी समन्तभद्र ने अपनी आप्तमीमासा मे वन्ध और मोक्ष के कारणो पर प्रकाश डालते हुए लिखा है
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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