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जीवो का विभाव शक्ति नाम का भव्यत्वभाव ऊपर बतलाये गये भव्य और अभव्य दोनो प्रकार के ससारी जीवो मे और स्वत सिद्ध होने के कारण विनाश रहित होने से मुक्त जीवो में भी समान रूप से विद्यमान रहता है।
जीवो के भव्यत्व और अभव्यत्व का व्याख्यान
यहा प्रकरण उन भव्यत्व और अभव्यत्व भावो का है जो जीवद्रव्य के अलावा किसी अन्य द्रव्य मे नही पाये जाते है तथा जिनके विषय मे ऊपर कहा गया है कि मुक्ति या मुक्ति के साधनभूत सम्यग्दर्शन आदि को प्राप्त करने अथवा ससार या ससार के साधनभूत मिथ्यादर्शन आदि को विनष्ट करने की योग्यता का नाम भव्यत्व है और इस प्रकार की योग्यता का अभाव अथवा इससे विपरीत योग्यता का नाम अभव्यत्व है।
इनमे से अभव्यत्व जिन ससारी जीवो मे है उनमे वह अनादि काल से तो चला ही आ रहा है साथ ही अनन्तकाल तक रहने वाला भी है। लेकिन जिन ससारी जीवो मे भव्यत्व भाव है उनमे वह यद्यपि अनादिकाल से विद्यमान चला आ रहा है परन्तु किन्ही-किन्ही जीवो मे तो वह अनन्तकाल तक अपने रवाभाविक भव्यत्वरूप मे ही रहने वाला है और किन्ही-किन्ही जीवो मे वह निमित्त मिलने पर परिवर्तित हो जाने वाला है अथवा यो कहिये कि विनष्ट हो जाने वाला है।
पूर्व मे बतलाया जा चुका है कि जिन ससारी जीवो मे अभव्यत्व है वे अभव्य कहे जाते है और जिन ससारी जीवो मे भव्यत्व हैं वे भव्य कहे जाते है चूकि अभव्यतत्व स्थायी है अत अभव्य हमेशा अभव्य ही रहने वाले है परन्तु भव्यत्व मे उक्त