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गणना मे अनन्तानन्त ठहरते है फिर भी मुक्त जीवो की सख्या ससारी जीवो की सख्या से अनन्त-भाग है और इसी तरह ससारी जीवो की संख्या मुक्त जीवो की संख्या से अनन्तगुणी है। मुक्त और ससारी जीवो का इस प्रकार का परिमाण आगामी अनन्तकाल मे अनन्तान्त ससारी जीवो द्वारा मुक्ति प्राप्त कर लेने के अनन्तर भी बना रहने वाला है क्योकि जैनागम मे अनन्तानन्त के अनन्तानन्त भेद स्वीकार किये गये है। इसलिये उक्त प्रकार मुक्ति की प्रक्रिया चालू रहने के कारण मुक्त जीवो के परिमाण मे अनन्तानन्त जीवो की वृद्धि हो जाने पर भी उनकी सख्या सर्वदा ससारी जोवो की संख्या की अपेक्षा अनन्तवेभाग ही बनी रहने वाली है । इसी प्रकार ससारी जीवो के परिमाण मे अनन्तानन्त जीवो की कमी हो जाने पर भी उनकी संख्या मुक्त जोवो की संख्या की अपेक्षा अनन्तगुणी बनी रहने वाली है क्योकि जैन-सस्कृति मे यह सिद्धान्त स्थिर किया गया है कि जव ससारी जीव अनादिकाल से अब तक नियतक्रम से सतत मुक्ति को प्राप्त करते जा रहे है और मुक्ति प्राप्त करने के पश्चात् कोई भी मुक्त जीव कभी ससारी नहीं बनता है तो ससारी जीवो मे अनादिकाल से कमी होते रहते यदि अभी तक अनन्तानन्त काल बीत जाने पर भी उनकी संख्या समाप्त नही हो सकी तो आगे अनन्तानन्त काल में अनन्तानन्त ससारी जीवो द्वारा मुक्ति प्राप्त कर लेने के अनन्तर भी उनकी उस सख्या की समाप्ति होने वाली नही है। इसके आधार पर ही यह निश्चित होता है कि मुक्त जीवो को सख्या में वृद्धि हो जाने पर भी उनका परिमाण हमेशा ससारी जीवो के परिमाण की अपेक्षा अनन्तवभाग तथा ससारी जीवो की सख्या मे कमी हो जाने पर भी उनका परिमाण हमेशा मुक्त जीवो के परिमाण