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________________ १७ प्रत्यक्ष और परोक्ष शब्दों का व्युत्पर्थ प्रत्यक्ष शब्द का अर्थ "अक्षं आत्मानं प्रति" इस व्युत्पत्ति के अनुसार पदार्थ की आत्मावलम्बनता के सद्भाव मे होने वाला पदार्थ ज्ञान होता है और परोक्ष शब्द का अर्थ "अक्षात् =आत्मान. परम्" इस व्युत्पत्ति के अनुसार पदार्थ की आत्मावलम्बनता के असद्भाव में होने वाला पदार्थ ज्ञान होता है तथा इस प्रकरण मे पदार्थ की आत्मावलम्बनता का अर्थज्ञान के आधारभूत पदार्थ का आत्म प्रदेशो मे प्रतिविम्बित हो जाना ही है इसी को पदार्थ का दर्शन या दर्शनोपयोग समझना चाहिये। पदार्थदर्शन के भेद और उनका नियमन उपर्युक्त पदार्थदर्शन कही-कही तो स्पर्शन, रसना, नासिका, नेत्र और कर्ण इन पाच इन्द्रियो मे किसी इन्द्रिय द्वारा अथवा मन द्वारा यथासम्भव यथायोग्यरूप मे हुआ करता है और कहीं-कही इन्द्रिय अथवा मन की सहायता के बिना ही यथायोग्यरूप मे हुआ करता है। इस तरह जैनागम मे पदार्थदर्शन के चार भेद माने गये है-चक्षुर्दर्शन, अचक्षुर्दर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन । नेन्द्रिय द्वारा पदार्थ के नियत आकार का नियत आत्म प्रदेशो मे प्रतिविम्बित हो जाने को चक्षुर्दर्शन, नेत्रेन्द्रिय को छोडकर शेष स्पर्शन, रसना, नासिका और कर्ण इन चार इन्द्रियो मे से किसी भी इन्द्रिय द्वारा अथवा मन द्वारा अपनेअपने अनुरूप पदार्थ के नियत आकारो का नियत आत्म प्रदेशो मे प्रतिविम्बित हा जाने को अचक्षुर्दर्शन, इन्द्रिय अथवा मन की सहायता के विना ही रूपी पदाथ आकार का नियत आत्म
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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