SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चाहिये । इस प्रकार कहा जा सकता है कि उक्त ज्ञानो के उक्त लक्षण करणानुयोग की विशुद्ध आध्यात्मिक दृष्टि में कहे गये है | लेकिन स्वरुप का कथन करने वाला जो द्रव्यानुयोग है उसकी दृष्टि से प्रत्यक्षज्ञान वह है जिसमे पदार्थ का साक्षात्कार रूपवोध होता है और परोक्षज्ञान वह है जो जिसमे पदार्थ का वोध तो हो लेकिन वह वोच साक्षात्काररूप न हो । पदार्थ का साक्षात्काररूप बोध वह है जो पदार्थदर्शन के सद्भाव मे होता है और पदार्थ का असाक्षात्काररूप वोच वह है जो पदार्थदर्शन का सद्भाव न रहते हुए होता है । इस प्रकार पदार्थदर्शन के सद्भाव मे जो वोध होता है उसे प्रत्यक्ष और पदार्थदर्शन के असद्भाव मे जो बोध होता है उसे परोक्ष समझना चाहिये । प्रत्यक्ष और परोक्ष के इन लक्षणों के अनुसार पदार्थदर्शन के सद्भाव मे होने के कारण अवग्रह, हा, अवाय और धारणा ये चारो मतिज्ञान तथा अवविज्ञान, मन पर्यायज्ञान और केवलज्ञान ये सव प्रत्यक्षज्ञान हैं शेष स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क और अनुमान ये चारो मतिज्ञान तथा श्रुतज्ञान ये सब चूकि पदार्थ दर्शन के असद्भाव मे होते है अत परोक्ष है । इसका तात्पर्य जैसा कि पूर्व मे कहा जा चुका है यह है कि प्रत्येक जीव मे पदार्थों को जानने की योग्यता की तरह पदार्थो को देखने की भी योग्यता विद्यमान है इसलिये जिस प्रकार प्रत्येक जीव जानने की योग्यता का सद्भाव रहने के कारण पदार्थों को जानता है उसी प्रकार वह देखने की योग्यता का सद्भाव रहने के कारण पदार्थों को देखता भी है । चूकि पदार्थदर्शन का सद्भाव पदार्थ के प्रत्यक्षज्ञान मे कारण होता है अत जो जीव पदार्थ का प्रत्यक्षज्ञान करना चाहता है उसमे पदार्थदर्शन का सद्भाव अवश्य होना चाहिये ।
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy