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________________ तीनों लोकों के सम्बन्ध में दर्पण की तरह हो रहा है अर्थात् जिनके ज्ञान में अलोक सहित तीनो लोक प्रतिविम्वित हो रहे हैं उन वर्द्धमान भगवान को नमस्कार हो । जिस प्रकार आत्मा मे पदार्थों के प्रतिविम्वित होने के लिये आगम मे उपर्युक्त प्रकार दर्पण का उदाहरण दिया गया है उसी प्रकार आत्मा मे पदार्थों के प्रतिभासित होने के लिये जागम में दीपक का उदाहरण दिया गया है । इस प्रकार यह बात अच्छी तरह सिद्ध हो जाती है कि आत्मा से परस्पर भिन्न दो शक्तिया विद्यमान हैं। उनमे से एक शक्ति के आधार पर आत्मा अपने अन्दर दर्पण की तरह पदार्थो को प्रतिविम्बित करता है और दूसरी शक्ति के आधार पर वही आत्मा अपने अन्दर प्रतिविम्वित पदार्थों को दीपक की नरह प्रतिभासित करता है । जिस शक्ति के आधार पर आत्मा अपने अन्दर पदार्थों को प्रतिविम्बित करता है वह दर्शनशक्ति है और जिस यक्ति के आधार पर आत्मा अपने अन्दर प्रतिविम्वित पदार्थो को प्रतिभासित करता है वह ज्ञानशक्ति है । दोनो पक्तिया परस्पर भिन्न हैं- इसका आधार यह है कि जात्मा की जो प्रतिविम्वक गक्ति है वह पदार्थों को प्रतिभासित करने में असमर्थ है क्योकि दर्पण पदार्थों का प्रति तो है लेकिन प्रतिभामक नहीं है । इसी तरह जो 'आत्मा की प्रतिभासक शक्ति है वह पदार्थो को प्रतिविम्बित नही करती है क्याकि दीपक पदार्थो का प्रतिभासक तो है लेकिन प्रतिविम्व नही है | आत्मा मे पदार्थप्रतिविम्वक (दर्शन) शक्ति की आवश्यकता आत्मा मे पदार्थ पनि (ज्ञान) शक्ति तो निर्विवाद मनन पाता प्रतिभान किया करता है किन *x
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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