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इतना होने पर भी आकाश द्रव्य' चूकि कभी विभाव परिणति को प्राप्त नही होता अत. इसमे कार्यकारणभाव व्यवस्था की कुछ उपयोगिता नही रह जाती है।
___ स्वपरसापेक्ष परिणमन के सम्बन्ध मे आकाश जैसी स्थिति अपने अपने स्वभाव के अनुरूप परद्रव्यो से भिन्न स्वावलम्बन पूर्ण स्थिति को प्राप्त धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य और समस्त कालद्रव्यो को भा जान लेना चाहिये ।
यद्यपि स्वपरसापेक्ष परिणमन के सम्बन्ध में आकाश जैसी स्थिति अपने स्वभाव के अनुरूप परद्रव्यो से भिन्न स्वावलम्बन पूर्ण स्थिति को प्राप्त सिद्धो अर्थात् मुक्त जीवो की भो हुआ करती है, परन्तु जीव का उदाहरण प्रकृत विषय मे मै आगे इसी प्रकरण में पृथक् से देने वाला हूँ अत आकाश और धर्मादि उल्लिखित द्रव्यो के साथ यहा पर सिद्ध जीवो को सम्मिलित नही किया गया है।
दर्पण का उदाहरण उक्त स्वपरसापेक्ष परिणमन के सम्बन्ध मे एक उदाहरण यहा पर दर्पण का भी उपस्थित किया जा सकता है। यथा
दर्पण का स्वभाव परपदार्थों को अपने अन्दर प्रतिविम्बित करने का है और उसका यह स्वभाव चूकि परसापेक्ष होकर ही परिणमनशील है अत जव जैसा परिणमन उन प्रतिविम्बित होने वाले पदार्थों का अपने अनुकूल कारणो के आधार पर होता है उसके अनुसार वैसा ही परिणमन तव दर्पण के प्रतिविम्बक स्वभाव का भी हो जाता है। अर्थात् दर्पण मे प्रतिविम्वित होने वाले पदार्थ जब जैसा अपना रूप