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'प्रसिद्ध है । उसका स्वरूप मूल सिद्धान्तानुसार जिसतरह आचार्यवर्य श्रीहरिभद्रसूरि ने 'लोकतत्त्व निर्णय' और वीर'शासन के रहस्यभूत अष्टक में निष्पक्षपात रीति से बतलाया है तथा कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य ने मी 'योगशास्त्र' और 'महादेवस्तोत्र' में कहा है, उसीके 'अनुसार यहाँ परभी दिखलाया जाता है
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"कश X उत्पन्न करनेवाला किसी प्रकार का रांग, और शान्तिरूप काष्ठ को भस्म करने के लिये द्वेष रूप दावानल, और सम्यग् ज्ञान का नाश करनेवाला तथा 'अशुभ प्रवृत्ति को बढ़ाने वाला मोह भी जिनके न हो, और जिनकी महिमा तीन लोक म प्रख्यात हो, उन्होंका महादेव मानते हैं । अथवा जो सर्वज्ञ और शाश्वत सुख 'का मालिक हो, और आठ प्रकार के क्लिष्टकर्मों से रहित; तथा हमेशा निष्कल अर्थात् निर्मल हो ( याने जो जीव* मुक्त हो) और जिसकी सब देव पूजा और योगी ध्यान 'करते हों; एवं जो सब नीतियों का बनानेवाला हो, 'वही महादेव है |
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* यस्य संक्लेशजननो रागो नास्त्येव सर्वथा । न च द्वेषोऽपि सत्वेषु शमेन्धनदवानलः ॥ १ ॥ न च मोहोऽपि सज्ज्ञानच्छादनोऽशुद्धवृत्तकृत् । त्रिलोकख्यातमहिमा महादेवः स उच्यते ॥ २ ॥ यो वीतरागः सर्वज्ञो यः शाश्वतसुखेश्वरः । किष्टकर्मकलातीतः सर्वथा निष्कलस्तथा ॥ ३ ॥ यः पूज्यः सर्वदेवानां यो ध्येयः सर्वदेहिनाम् । यः स्रष्टा सर्वनीतिनां महादेवः स उच्यते ॥ ४ ॥