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(२९) और बाकी तीन दान सांसारिक सुख के कारण हैं । इसीरीति से ब्रह्मचर्यरक्षणरूप शीलधर्म के पालन करने से उभय लोक में अखण्ड कीर्तिलता का विस्तार होता है । एवं स्वर्ग और मोक्ष के प्राप्त्यर्थ · तथा कर्मरूप महारोग को नाश करने के लिये ४ बारह प्रकार का तपोधर्म परम औषध है।
अनित्यादि + बारह भावनाओं के द्वारा शुद्ध मनोवृत्ति होने को भावधर्म कहते हैं । जैसे राजा भरत ने भावधर्म के बल से ( आत्मा के आवरणरूप ) ज्ञानाघरणीयादि चार कर्मों को क्षय करके केवलज्ञान की
४ अनशन (उपवास), ऊनोदरता (आहारादि और क्रोधादि को यथाशक्य न्यूनकरना), वृत्तिसंक्षेप (इच्छानिरोध), रसत्याग (घृतादि विकृतित्याग), कायक्लेश (शिरोलुश्चन शीतादिसहन), संलीनता (इन्द्रियादिकों को अशुभप्रवृत्ति से हटाना) संप से बाह्य तप छे प्रकारके हैं । और प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य ( आचार्य संघादि की आहारादि ले सेवा ), स्वाध्याय, ध्यान, व्युत्सर्ग (यथाशक्ति आहार, शरीरादि का त्याग). रूप से आभ्यन्तर भी तप छे प्रकार के हैं।
__ + १ अनित्यभावना २ अशरणभावना ३ भवभावना ४ एकत्वभावना ५ अन्यत्वभावना ६ अशौचभावना ७ आस्रवभावना ८ संवरभावना ९ कर्मनिर्जराभावना १० धर्मभावना ११ लोकस्वरूपभावना १२ बोधिबीजभावना रूप से बारह भावनाएँ हैं।