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॥ अर्हम् ॥
जैन शिक्षा दिग्दर्शन.
यस्य निखिलाच दोपा न सन्ति सर्वे गुणाथ विद्यन्ते । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा हरो जिनो वा नमस्तस्मै ॥ १ ॥ तवाभिलाषी महाशय !
जगत् में मुख्य पदार्थ चेतन और जड़ ( पौगलिक आदि ), रूप से दो प्रकार के हैं और उन दोनों में अनन्त शक्तियां हैं। जिस समय जड़ वस्तु का उदय होता है उस समय चेतनवाद गौण हो जाता है और जव चेतनवाद का उदय होता है तब जड़वाद गौणता को धारण करता है । यदि दोनों पक्ष निरपेक्ष दृष्टि से देखे जायें, तो विरुद्ध प्रतिभास होंगे; किन्तु सापेक्ष रीति से देखने पर स्यादूवादन्याय'नुसार कोई हानि नहीं मालूम पड़ती । अर्थात् जड़वाद के ज्ञान हुए विना चेतनवाद का ज्ञान होनाही असंभव है इसलिए जैसे जड़वाद अनादि अनंत काल से चला आता है उसी तरह चेतनवाद भी है, क्योंकि चेतनवाद के विना जड़वाद शब्द का प्रयोग करना भी दुर्लभ है । जैसे चोर शब्द साहूकार की अपेक्षा रखता है; उसी तरह • साहूकार भी चोर शब्द की अपेक्षा करता है; इसलिए वस्तुमात्र में सापेक्षता भरी हुई है । इसी रीति से यदि
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