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अलग हो जाती है लेकिन उसके मार्ग में बाधा नहीं बनती। डॉ० मनमोहन सहगल के इस सम्बन्ध में विचार द्रष्टव्य हैं -
'चन्द्री का आदर्श तो इस तथ्य में है कि वह कदापि जयन्त के मार्ग का विघ्न नहीं बनती और न ही अनिता-जयन्त मिलन पर कभी ऑख मैली करती है, बल्कि अवसर आने पर स्वयं रसोईघर में धरती पर सोकर भी वह जयन्त और अनिता का विस्तर साथ लगाकर जयन्त की भावनाओं का आदर करती हैं। चन्द्री उच्च चेतना और दृढ चित्त की उदार महिला है।
वेश्या का स्वरूप
वेश्या नारी का जीवन भारतीय समाज में एक अभिशप्त जीवन की सृष्टि करता है। वैश्यावृत्ति भारतीय समाज की एक गम्भीर समस्या है, जो अत्यधिक प्राचीन काल से समय-समय पर अपने स्वरूप और उद्भव स्रोतों में परिवर्तन के साथ चली आ रही है। लेकिन इसके मूल में प्रायः प्रत्येक काल में आर्थिक आधारहीनता ही रही है। भारतीय समाज में वैधव्य की समस्या, दहेजप्रथा, पर्दाप्रथा, बहुपत्नीत्व आदि ऐसी सामाजिक कुप्रथाएँ रही हैं जो त्रस्त, निरीह नारी को जीवित रहने तथा आर्थिक स्वावलम्बन प्राप्त करने के लिए वेश्या बनने को मजबूर करती रही हैं। संयुक्त परिवार के विघटन के फलस्वरूप इस समस्या ने और उग्ररूप धारण किया, क्योंकि उसके द्वारा निराश्रित नारियों की जो आर्थिक सुरक्षा मिलती थी, वह समाप्त हो गयी। पति के मरने के बाद बिधवा नारी आर्थिक दृष्टि से निराधार, परिवार द्वारा उपेक्षित, समाज से लांक्षित पीड़ित तथा प्रताडित एकाकी परिवार की सीमा से निकल कर व्यापक समाज की
36 डॉ. मनमोहन सहगल - उपन्यासकार जैनेन्द्र मूल्याकन और मूल्याकन, पृष्ठ - 71
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