________________
इस तरह ब्रह्मचर्य मानव समाज ही नहीं, वरन् चराचर विश्व के साथ योग पाने की साधना का नाम है। इसमें मनुष्य के समाज से अलग हो जाने की बात ही नहीं की जा सकती है। जीवन में काम को न मानकर ब्रह्मचर्य की साधना करना ही मनुष्य का अहं है। सत्य की शक्ति के कारण ही मन का झूठ परास्त हो जाता है और मनुष्य को टूटना पडता है। 'अकेला' शीर्षक कहानी में ब्रह्मचर्य की इच्छा करने वाला मनुष्य स्वयं को धोखा नहीं दे पाता है और कहता है, वह अकेले नहीं रह सकता, अकेले रहना उसके लिए अधर्म है।' जैनेन्द्र के अनुसार, असत्य के सहारे समाज में ऊपर उठने से अच्छा है, मन के सत्य को मानकर अपने को अर्पण कर देना, क्योंकि सत्य वाह्य स्वभाव में ही नहीं, अन्दर और वाह्य की समग्रता में ही सम्भव है। इसके लिए मनुष्य में पूर्णता अपेक्षित है, यही जैनेन्द्र की मान्यता है।
विवाह और परिवार
विवाह पारिवारिक जीवन की प्रमुख घटना होती है। इसलिए परिवार को उन्होंने वैवाहिक जीवन के लिए अनिवार्य माना है। वे विवाह को किसी भी स्थिति में उपेक्षणीय नहीं मानते अतः विवाह के साथ परिवार का होना स्वाभाविक ही है। परिवार वह स्थान है जहाँ स्त्री-पुरुष विवाह संस्कार के सम्पन्न होने के उपरान्त सन्तानोत्पत्ति तथा शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास की ओर मुड़ते हैं। जैनेन्द्र के शब्दों में -
विवाह ही है जो हमें संसार में पहुँचने का रास्ता देता है। बीस की पूर्णता होते ही इक्कीसवां वर्ष अपने आप उस पर आ जायेगा। विवाह की एक ऐसी ही सहज परिणति मैं मानता हूँ।14
14. जैनेन्द्र कुमार - काम, प्रेम और परिवार, पृष्ठ-20-21
[41]