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कथा - साहित्य-सृजन करते थे। युग चेतना का इतना सशक्त और सरल कथाकार हिन्दी साहित्य में दूसरा नहीं हुआ।
जैनेन्द्र कुमार की मनोविश्लेषणात्मक दृष्टि का कथा साहित्य पर पर्याप्त प्रभाव पड़ा। उनकी कथा क्षीणता, चरित्रों को केन्द्रीय महत्व देना तथा उनके नाम पर कथा साहित्य का नामकरण करना, चरित्र-चित्रण में मनोविश्लेषण की विधियों का प्रयोग करना कुछ प्रमुख विशेषताएँ हैं जो उन्होंने परवर्ती कथा शिल्प को प्रदान की । जैनेन्द्र कुमार ने हिन्दी उपन्यासों को एक नयी दिशा दी। आज के विभिन्न उपन्यासों पर उनके प्रस्तुतीकरण - शिल्प का प्रभाव देखा जा सकता है।
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जैनेन्द्र कुमार भाषा के स्तर पर व्याकरण सम्मत भाषा के आदी नहीं थे। इसलिए उनके कथा साहित्य की अभिव्यंजकता में व्याकरण सम्मत भाषा का प्रयोग नहीं मिलता। वह अपने पात्रों के हृदयगत भावों के लिए वाक्य संरचनात्मकता का परम्परित रूप ग्रहण नहीं करते थे, क्योंकि वे भाषा को भावों की अनुवर्तिनी मानते थे। पात्रों की जैसी भी आभावधारा होगी भाषा उसके अनुरूप ही स्वरूप ग्रहण करेगी ऐसा उनका मानना था ।
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जैनेन्द्र कुमार के कथा साहित्य पर तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक तथा शिल्पगत युग चेतना का व्यापक प्रभाव पड़ा है। उनकी सांस्कृतिक चेतना में बौद्धिकता का आग्रह है, जिससे सांस्कृतिक धरातल पर अराजकता की स्थिति दिखायी पड़ती है । आज ऐसा लगता है कि सांस्कृतिक विकास में गतिरोध की स्थिति आ गई है। प्राचीन काल के शाश्वत जीवन मूल्यों की स्थापना नहीं हो पा रही है। जैनेन्द्र कुमार के कथा साहित्य में युग चेतना का सर्वांगीण चित्रण हुआ है। इसलिए वह युग चेतना के प्रतिनिधि कथाकार कहे जाते हैं।
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