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________________ काम-भावना, वेश्यावृत्ति आदि विषयों का विवेचन उन्होंने अपनी अनुभूतियों के आधार पर प्रस्तुत किया। जैनेन्द्र कुमार ने सामाजिक मर्यादा का निषेध नहीं किया और न ही परिवार को तोडने के पक्ष में विचार व्यक्त किया, किन्तु जहाँ तक प्रेम का सम्बन्ध है, उसे वह सामाजिक बन्धन से मुक्त मानते रहे। काम और प्रेम को लेकर उनके साहित्य में अनेकानेक समस्याएँ दृष्टिगत होती है। यह सत्य है कि विवाह में प्रेम द्वारा जैनेन्द्र कुमार ने जीवन के एक महत्वपूर्ण सत्य की ओर दृष्टिपात किया, क्योंकि इस सत्य को कोई नकार नहीं सकता कि विवाह के बाद पति-पत्नी का आकर्षण बाहर की ओर से पूर्णतया समाप्त हो जाता है और वे परिवार के घेरे में बन्द हो जाते हैं। हम व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कह सकते हैं कि विवाह के अनन्तर भी प्रेम की स्थिति बनी रहती है। यह बात दूसरी है कि वह काम के स्तर पर घटित होता हुआ न दिखाई दे। जैनेन्द्र कुमार ने जीवन की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक आदि समस्याओं को व्यक्ति-सापेक्षता में ही स्वीकार किया। कथा साहित्य और दर्शन दोनों एक दूसरे से अलग हैं, परन्तु दार्शनिक चेतना की अभिव्यंजना इसलिए होती है कि उसमें एक विशाल युग-जीवन के साथ-साथ मनुष्य के जीवन की व्याख्या और आलोचना होती है। इसके अलावा पात्रों के अपने विश्वास, तर्क, बौद्धिकता तथा आस्था में कहीं-न-कहीं कथाकार का जीवन दर्शन अभिव्यक्त हो जाया करता है। जैनेन्द्र कुमार के कथा साहित्य का प्रमुख तत्व नियतिवाद है। उनका कहना था कि हमको कर्म करना चाहिए, होगा वही जो होना है, इसे हम परिवर्तित नहीं कर सकते हैं। जैनेन्द्र कुमार का यह नियतिवाद गीता का कर्मवाद है। 'गीता' में निराशावाद से भरी अकर्मण्यता के स्थान पर आशावाद युक्त कर्म मार्ग को नियतिवाद माना गया है। जैनेन्द्र कुमार के नियतिवाद तथा गीता-दर्शन में साम्य है, जिसकी उनके कथा साहित्य में व्यापक रूप [212]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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