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एव व्यंजक है। जैनेन्द्र प्रायः छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करते हैं। जयवर्धन को देखा! मिला! बात हुई! व्यक्ति नहीं, वह घटना है। वह दो व्यक्तित्न स्पष्ट नहीं हैं कहीं भीड़ खो भी सकती है। जैनेन्द्र जी के वाक्य रचना शैली के अनुरूप तथा उद्देश्य की पूर्ति के लिए अत्यन्त उपयुक्त हैं।
शब्द भण्डार
जैनेन्द्र भाषा को स्वयं में कुछ न मानकर भावों की अभिव्यक्ति का साधन मानते हैं। इसलिए उन्होंने शब्द चयन में भाषा की कृत्रिम सीमा का बन्धन नहीं माना। उनकी भाषा में तत्सम्, तद्भव, देशज तथा विदेशी शब्द उपलब्ध हैं। जहाँ अंग्रेजी में स्कीम म्यूजियम'35, चैरिटी हॉस्पिटल, डेप्युटेशन", स्टडी' जैसे तथा उर्दू में 'कुबूल'199, गनीमत०, माफिक, फर्ज. अर्ज जैसे सुपरिचित शब्द आए है, जिन्हें साधारणतया समझा जा सकता है। वही अक्सेट", इकनामिक डिपेनडेंस, आओसिल, ट्रान्जिटा, तथा अकीदे, फाहिश,
133 जेनेन्द्र कुमार - जयवर्धन, पृष्ठ - 17 134 जेनेन्द्र कुमार - परख, पृष्ठ - 11 135 जेनेन्द्र कुमार - परख, पृष्ठ - 11 136 जैनेन्द्र कुमार – कल्याणी, पृष्ठ - 21 137 जैनेन्द्र कुमार - कल्याणी, पृष्ठ-21 138. जैनेन्द्र कुमार - मुक्तिबोध, पृष्ठ -9 139. जैनेन्द्र कुमार - परख, पृष्ठ - 88 140. जेनेन्द्र कुमार – कल्याणी, पृष्ठ - 20 141. जैनेन्द्र कुमार – कल्याणी, पृष्ठ - 20 142 जैनेन्द्र कुमार - मुक्तिबोध, पृष्ठ-47 143 जैनेन्द्र कुमार - मुक्तिबोध, पृष्ठ-48 144 जेनेन्द्र कुमार - कल्याणी, पृष्ठ -8 145 जैनेन्द्र कुमार - कल्याणी, पृष्ठ - 86 146. जैनेन्द्र कुमार - सुखदा, पृष्ठ-32 147. जैनेन्द्र कुमार - सुखदा, पृष्ठ -95 148 जैनेन्द्र कुमार - त्यागपत्र, पृष्ठ - 40 149 जैनेन्द्र कुमार - त्यागपत्र पृष्ठ - 70
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