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शैली में एक विचित्र रहस्य तथा भेद पलता है । यह रहस्य तत्व सांकेतिकता, व्यंजना तथा प्रतीकत्व से आया है। जैनेन्द्र के कथनों में कहीं-कहीं गूढ़ आशय आ जाता है। दर्शन के प्रसंगों में वे विशिष्ट प्रकार के चिन्तन की बात करने लगते हैं जो साधारण पाठक की समझ में नहीं आती।
अनिश्चयात्मकता
शैली को रहस्यमय बनाने का एक उपादान अनिश्चयात्मकता है। कथाकार कहीं भी निश्चित सुस्पष्ट कुछ नहीं कहता है । स्थानों के बारे में अमुक से काम चला देता है। कई बार अपनी स्मरण शक्ति के धोखे से त्रस्त, वह कहता है पता नहीं यह था या वह अथवा याद नहीं आता का सहारा लेता है। बिहारी सत्यधन को लिखता है कि वह लोग अमुक दिन कश्मीर जा रहे हैं। 121 प्रमोद को अपनी बुआ के बारे में ठीक याद नहीं कि वह नवीं क्लास में थी या दसवीं में । अपनी आयु भी वह अनुमानतः ही बताता है कि बारह बरस की हो रही होगी। 122
जैनेन्द्र चिन्तनशील लेखक हैं । वे सोचते-सोचते लिखते हैं और लिखते-लिखते सोचते हैं, जिसके कारण जैनेन्द्र की शैली में तर्क-वितर्क तथा प्रश्नाकुलता का वैशिष्ट्य आ गया है, चाहे स्वयं लेखक वस्तु कथन कर रहा हो या किसी पात्र का ब्यौरा दे रहा हो अथवा नाटकीय विधि के अन्तर्गत, पात्र स्वयं सोच रहा हो अथवा एकाधिक पात्रों में कहीं वार्तालाप हो, सब स्थानों पर हम इनकी दृष्टि सप्रश्न पाते हैं, मानों वह किसी अंतिम निर्णय पर पहुँच में असमर्थ हो अथवा प्रश्नों के माध्यम से पाठक के सामने निर्णय लेने की दुविधा
120 डॉ० मक्खन लाल शर्मा हिन्दी कहानी रचना प्रक्रिया का संदर्भ (लेखक) संचेतना, मार्च, 1970, पृष्ठ 171-172
121 जैनेन्द्र कुमार - परख पृष्ठ 122. जेनेन्द्र कुमार त्यागपत्र, पृष्ठ
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