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जैनेन्द्र के अधिकांश पात्र नागरिक, सुशिक्षित सुरुचिपूर्ण तथा कला-प्रेमी हैं। ‘परख' की कट्टो ही इसका अपवाद है। प्रायः वे अच्छे पदों पर हैं तथा उनके सामने रोजी-रोटी की समस्या नहीं है। यह विस्मयजनक साम्य है कि जैनेन्द्र के पुरुष पात्र प्रायः न्यायपालिका से सम्बन्धित हैं। सत्यधन और श्रीकान्त वकील हैं, प्रमोद तथा राम चरण जज हैं, नरेश बैरिस्टर है; कल्याणी और जयन्त कविताएँ लिखते है, सुनीता के स्टडी रूम में शेली तथा अन्य कवियों का कविता-संकलन है तथा वायलिन, सितार, हारमोनियम तथा तबला आदि वाद्य-यन्त्र हैं। हरि प्रसन्न चित्रकारी करता है तथा फोटो भी ठीक कर सकता है। जैनेन्द्र का यह चयन सोद्देश्य है। ऐसे भावुक पात्र अधिक संवेदनशील होंगे तथा उनके व्यवहार सामान्य से पृथक् होंगे। वकील या बैरिस्टर पात्र इसलिए रखे गए हैं क्योंकि वह समाज के विधि-निषेधों के प्रतीक एवं कानून के प्रतिनिधि हैं क्योंकि जैनेन्द्र अपने कथा साहित्य में सामाजिक कानून को स्वीकार नहीं करते हैं। मनोविज्ञान में व्यक्ति के मन के रहस्यों को जानने के लिए मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की कई विधियाँ हैं। जिन व्यक्तियों के मन में कोई ग्रन्थि या दमित इच्छा है उनके उपचार करने के लिए मनोविज्ञान में इन विधियों का प्रयोग किया जाता है। उपन्यास या कहानी के पात्रों के मन में जो भावनाओं की आँधी प्रतिपल चलती रहती है, अथवा ऐसे रहस्य गढ़े हुए है जिनका कारण सुदूर अतीत में है, जिससे वह स्वयं भी परिचित नहीं, उन्हें पाठक तक कैसे पहुँचाया जाये? उत्तर स्पष्ट है x x x x x मनोविश्लेषण की विधियों द्वारा। यह तथ्य ध्यान में रखने योग्य परिवर्तित रूप में प्रयुक्त होता
है।
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