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नरेश ने कहा-'अच्छा' और मोहिनी चाय तैयार करती रही। (परिच्छेद आठ का अन्त) चाय के बीच में मोहिनी ने पूछा 'क्यों, आज चुप क्यों हो।" नरेश बोले 'कुछ नहीं (परिच्छेद नौ का आरम्भ)
जैनेन्द्र के अधिकांश उपन्यासों का आरम्भ चिन्तापरक है। आत्म-कथात्मक उपन्यासों में प्रधान पात्र अपनी विगत कथा को पूर्व दीप्ति के रूप में प्रस्तुत करता है। प्रायः वह पात्र अपने जीवन की अन्तिम स्थिति में होता है या तो चूक गया होता है अथवा टूट चुका होता है। 'सुखदा' की नायिका क्षय रोगिणी है तो 'व्यतीत' का नायक जयन्त ‘पैंतालीसवीं वर्षगांठ पर स्वयं को बीता हुआ अनुभव करता है। वह अपनी कथा का श्री गणेश स्वयं को अनुभव करने की कथा से करता है। इस प्रकार कथा प्रस्तुत करने में जैनेन्द्र ने मनोवैज्ञानिक प्रयोग के अन्तर्दर्शन का प्रयोग किया है। अन्तर्दर्शन मनोवैज्ञानिक प्रयोग की वैज्ञानिक पद्धति है, जिसमें विषयी अपने मन में झाँक कर अपने जीवन तथा व्यवहार का निरीक्षण करता है। इस प्रकार पूरी कथा 'आत्म निरीक्षण मूलक सामग्री' के रूप में हमें प्राप्त हो जाती है।18
16 जैनेन्द्र कुमार - विवर्त, पृष्ठ -71 17. जैनेन्द्र कुमार - विवर्त, पृष्ठ-72 18 वह भी अपने विचारों, अनुभूतियों और अभिप्रायों का तथा वह जो कुछ देखता, सुनता और जानता है उसके
विषय में हमें जानकारी करा सकता है। जब वह स्वय अपनी चेष्टाओं का निरीक्षण करता है तो इसे अन्तर्दर्शन कहते है और जो सामग्री वह प्रस्तुत करता है उसे अन्तर्दर्शन से प्राप्त सामग्री कहते है। उसे आत्मनिरीक्षण मूलक सामग्री भी कहते है, क्योंकि व्यक्ति आत्म निरीक्षण करके इसे प्रस्तुत करता है।.... अन्तर्दर्शन को पश्चात्-प्रतिमा के निरीक्षण के द्वारा समझाया जा सकता है...किन्तु कोई दूसरा व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की पश्चात्-प्रतिमाओ को नहीं देख सकता है ठीक उसी तरह जैसे कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के दॉत में होने वाले दर्द को नहीं देख सकता है। (राबर्ट एस० वुडवर्थ तथा डोनाल्ड डी० माक्सिवैस)
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