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थी फिर भी उसकी पिटाई की गई। इस प्रकार सेक्स के मार्ग में प्रथम ग्रन्थि का उदय हुआ । विवाह हुआ, एक सती पतिव्रता के नाते सर्वस्व सौंपते हुए उसने अपने पति से कुछ भी नहीं छिपाया । परिणामतः उस पर लांछन लगा और पिटाई हुई, यहाॅ पर उसमें दूसरी ग्रन्थि ने जन्म लिया । विवाह अनमेल था। पति अधिक आयु का था, शीला का भाई समव्यस्क होने के कारण आकर्षण का स्वाभाविक केन्द्र रहा होगा। आखिर क्यों वह अपनी इच्छा के पुरुष को तन नहीं दे सकती ? पुनः ग्रन्थि, सबका निष्कर्ष यह कि तन देना स्त्री की नियति है, इच्छा का पुरुष विसंगति । यहीं से मृणाल का विद्रोह आरम्भ होता है । अत्याचारी और अन्यायी समाज से बदला लेने में वह अपने को असमर्थ पाती है। विद्रोही का पथ सत्याग्रह का मार्ग बन जाता है। वह समाज की जगह अपने को तोडने का संकल्प लेती है। मैं समाज को तोड़ना - फोड़ना नहीं चाहती हूँ । समाज टूटा कि फिर हम किसके भीतर बनेंगे? या कि किसके भीतर बिगड़ेंगे? इसलिए मैं इतना ही कर सकती हूँ कि समाज से अलग होकर उसकी मगलाकांक्षा में खुद ही टूटती रहूँ।' मृणाल आत्मपीड़ा की जीवन पद्धति अपना कर इस जलन से दूसरों का पथ आलोकित करने लगती है। दूसरी ओर सेक्स क्षेत्र में उसका निष्कर्ष उसे धीरे-धीरे वेश्यावृत्ति की ओर धकेलने लगता है । तन देकर धन पाने की प्रवृत्ति तथापि उसमें नहीं आयी, तो भी उसकी स्थिति सोचनीय है। उसका निजी विश्लेषण है। जिसको तन दिया, उससे पैसा कैसे लिया जा सकता है। यह मेरी समझ में नहीं आता । तन देने की जरूरत मै समझ सकती हूँ, तन दे सकूँगी, शायद वह अनिवार्य हो । पर लेना कैसा ? दान स्त्री का धर्म है ।' मृणाल के विषय में डॉ० मनमोहन सहगल के विचार द्रष्टव्य हैं
1 जैनेन्द्र कुमार - त्यागपत्र, पृष्ठ - 73
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जैनेन्द्र कुमार - त्यागपत्र, पृष्ठ-64
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