________________
आत्म-समर्पण की भावना से सम्बन्धित होकर ही वे काम, प्रेम, भोग आदि भावों को स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सके हैं। जैनेन्द्र ने कहा है कि हमने प्रेम को खानों में बाँट दिया है और शरीर जहाँ उपस्थित है वहाँ अपवित्र और अनुपस्थित है वहाँ पवित्रता की भावना को विठा दिया है। मै मानता हूँ कि जो अधूरा है वह तृष्णार्थ है। ‘एकरात कहानी' तथा 'सुनीता' उपन्यास में उसकी समर्पण भावना निहित है।
जैनेन्द्र ने पशु-पक्षी तथा जड प्रकृति के क्रिया कलापों में अन्तर्निहित प्रेम की अभिव्यक्ति की है। पशु-पक्षी में उन्होंने मानवीय संवेदनाओं को प्रतिष्ठित करके प्रेम का उच्चादर्श व्यक्त किया है। “एक गौ' तथा 'दो चिड़ियाँ' कहानियों में सात्विक तथा रोमान्टिक प्रेम की अत्यधिक मार्मिक अभिव्यक्ति है।
___ जैनेन्द्र जी के अनुसार जीवन संघर्ष पूर्ण है। संसार रणभूमि है। मनुष्य अपने भाग्य और परिस्थिति से जूझता हुआ अपनी जीवन-यात्रा को पूर्ण बनाने का प्रयास करता है। उन्होंने अपने शब्दों मे कहा है-'जीवन एक सहादत है। शास्त्र कहते हैं कि यज्ञ है। 'कल्याणी', 'जयवर्धन' आदि उपन्यासों मे जीवन के यज्ञ में स्वयं को हुताहन बना देना ही उनका लक्ष्य हैं। उनके अनुसार जीवन की सार्थकता उससे चिपटे रहने में ही नहीं है। उनके अनुसार महान लोग मृत्यु से नहीं घबराते है और प्रसन्नता से मौत को गले लगा लेते हैं। ‘फाँसी' में शमशेर अपनी मौत द्वारा जीवन को अर्थवत्ता प्रदान करता है। वह मृत्यु को प्रधानता न देकर यह मानता है कि जीवन के लिए कभी-कभी मृत्यु का आलिंगन श्रेयस्कर होता है। जैनेन्द्र मौत में जीवन को समाप्त नही मानते, क्योंकि जीवन तो अनन्त यात्रा है।
7. जैनेन्द्र कुमार - काम, प्रेम और परिवार, पृष्ठ - 33 8. जैनेन्द्र कुमार - कल्याणी, पृष्ठ - 110 9. जीवन ही जलना है। वह है, यज्ञ मे उससे बचना क्यो चाहें - जैनेन्द्र कुमार 10. जैनेन्द्र कुमार - विवर्त, पृष्ठ – 126
[128]