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धर्म-भावना प्रगति के रास्ते पर चल सकती है। जनेन्द्र की धार्मिक चेतना अत्यन्त उदार है। उनके कथा साहित्य में जहाँ कहीं भी उनकी धार्मिकता के दर्शन होते है, वे उनके विचारो की उच्चता और व्यापकता के ही दर्शन कराते हैं। उनका साहित्य उनके धर्म का ही अभिव्यक्त रूप है।
जैनेन्द्र के अनुसार यद्यपि परम धर्म मानव धर्म या अहिंसा धर्म है, किन्तु सामान्य रूप में किसी भी को किसी विशिष्ट मार्ग पर चलने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। , अनन्तर' में जैनेन्द्र ने अपनी इसी सहृदयता का परिचय दिया है। जैनेन्द्र ने कहा है कि हम अपने मन से सबको नापते हैं, शायद हम विवश हैं। इसलिए हममें से हर एक को चाहिए कि स्वयं को लेकर जो भी चाहे हों, दूसरों को उस जैसा न रहने दे। धर्म व्यक्ति के अहं को नष्ट कर देता है, उसे अधिक से अधिक उदार बना देता है। जैनेन्द्र ने 'अनन्तर' में अपने शब्दों में कहा कि है धर्म जिसे गला देता है मत उसी को फुलाने लगा। जैनेन्द्र ने धर्म के सम्प्रदाय को स्वीकार किया है, किन्तु उनकी आत्मा मानव हित में ही केन्द्रित रहती है। धर्म सामंजस्य उत्पन्न करता है। जैनेन्द्र के अनुसार धर्म वह है, जिसे मानकर बुद्धि में नम्रता आती है और विद्रोह नहीं रहता। अर्थ और काम से युक्त हो जाता है। यद्यपि अर्थ और अर्थ और काम भी जीवन के पुरुषार्थ हैं, किन्तु उनका भी धर्म से युक्त होना आवश्यक है।
धर्म और विज्ञान
जैनेन्द्र ने धर्म और विज्ञान के सम्बन्ध में एक नया दृष्टिकोण अपनाकर कथा साहित्य की रचना की है। उन्होंने धर्म और विज्ञान
33 जैनेन्द्र कुमार - अनन्तर, पृष्ठ -67 34 जैनेन्द्र कुमार - अनन्तर, पृष्ठ - 85 35 जैनेन्द्र कुमार - समय, समस्या और सिद्धान्त, पृष्ठ - 131
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