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अध्याय-4 जैनेन्द्र के कथा साहित्य में दार्शनिक चेतना 122-140 • कथा साहित्य और दार्शनिक चेतना : अन्तर्सम्बन्ध • जैनेन्द्र की दार्शनिक चेतना का स्वरूप • नियतवादी दार्शनिक चेतना • आस्थामूलक भाग्यवादिता • निष्काम कर्मयोग • पुनर्जन्म, मृत्यु और अमरत्व
अध्याय-5 जैनेन्द्र के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिक
__ चेतना • कथा साहित्य और मनोविज्ञान : अन्तर्सम्बन्ध • जैनेन्द्र के पुरुष पात्रों में मनोवैज्ञानिक चेतना • जैनेन्द्र के नारी पात्रों में मनोवैज्ञानिक चेतना
अध्याय-6 जैनेन्द्र के कथा साहित्य में शिल्पगत चेतना157-209 • कला और शिल्प तथा युग चेतना : अन्तर्सम्बन्ध • कला का स्वरूप • साहित्य में शिल्प प्रयोग एवं उसका आशय • जैनेन्द्र के कथा साहित्य में शिल्पगत चेतना • कथावस्तु-शिल्प • चरित्र-चित्रण-शिल्प • स्वप्न-दिवास्वप्न-विभ्रम • सम्मोहन तथा मुक्त आसंग