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कष्ट
इतना कहा और पति महाशय माथे को हाथ में लेकर रुग्रासे हो श्राए।
प्रतिमा ने उनके सिर को लेकर अपने वक्ष मे समेटा । कहा, "कुछ नही । सपना था । सो जाओ।"
"नही, नहीं । सपना नही था।" "तुम क्यो फिकर करते हो?"
"सच कहता हूँ । मैंने गिने थे । एक-एक कर गिने थे । एकदम नए नोट थे और पूरे ढाई हजार थे।" ___ "सुनो, अव नही कहूगी । मरे रुपये का मुझे क्या करना है । तुम फिकर न करो । फिकर-फिकर मे जाने क्या-क्या देख जाते हो ?"
"तुम्हे यकीन नही आता है ?" कहता हुआ पति पत्नी की गोद मे से छिनकर अन्नग हो बैठा ।
प्रतिमा ने उसे ऐसे देखा जैसे आखो मे निरी प्रोस हो । गिडगिडाती बोली, "नही । अब नहीं कहूगी । मेरे मारे ही तो फिकर
है।"
पति ने उठाकर एक जोर का चपन पत्नी के गालो पर जड दिया। चिल्लाया, "फिकर है तेरा सिर । मैं झूठ बोलता हू?" .
पत्नी प्राख फाडे अपने देवता स्वरुप पति को देखनी रही । "यकीन नहीं पाता न ? और मैं झूठ बोलता है, क्यो ?"
यह कह कर उसने भी जोर से अपने गालो पर उसने चपन जमा लिया फिर तो तडातड वह अपने को पीटने लगा । रहता जाता था, "मैं झूठा हू, कमाता ह तव भी झूठा • झूठा है ताले, तू मर ।"
पत्नी ने पति के उठते हुए दोनो हाथो को जोर से परड फर वर जोरी अपने वक्ष के नीचे दवा लिया । कहा, "मुझे माफ करो । माफ फरो। अव कभी नहीं पहूगी।"
पति में जाने कितना जोर या गया । हाय चीनकर उठ खडा ग्रा बोला, "मैं झूठा है न ? रुपये नहीं मिले और किसी ने नहीं चुराए