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जैनेन्द्र की कहानिया दसवा भाग
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हजूर, यह नाचीज क्या है, अपनी मालिका का साकनार सादिम
है ।"
"लेकिन सुनो, व्याह से पहले श्रव एक पैना नही मिलेगा ।" तुम मिलोगी तो सब कुछ मिलेगा ।"
"कैसे नही मिलेगा प्रमिला ! "तुम मोचते हो में बेवकूफ हू
?"
"खुदा का खोफ करो, गजब की खूबसूरत हो ।"
"हटो, तुम्हारी पैसे पर निगाह है ।"
"ग्रजी, निगाह तो श्राप पर है । श्रापके प्राचल में पैसा है, तो उसमे मेरा क्या कसूर
"अच्छा वादा करो, किसी घोर से मुहब्बत नही करोगे ।" "दोनो शादियों मे वादा किया था । वादा वही बघा रहता तो इस मुहब्बत की नौबत कैसे भाती, मेरी प्रमिला ! वह सब छोटो । गाडी लाई हो ? चलोगी ? चलो, श्रोसला चलें ।"
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"फिर वही
"देखो, भूखे को क्यों मारती हो? तुम्हारी रसम, सवेरे से मैने
कुछ साया नही था । श्रव जरा पेट भरा है तो
"बडे ढीठ हो !" "ग्रापकी दुआ है ।"
प्रमिला का परिचय पाने को श्रावयता नहीं है । उम्र ऊने घराने को दिल्ली के लोग जानते हैं । कहानी में भी परिचय देने का काण नहीं है । कारण, खाना-पीना चल ही रहा था बीच में ही शेलेन स्पट मनाकर बोला, "यह सब रहने दो, उठी।" "क्यो, ऐसी क्या घवराहट है "
"वह यम्बरन बुर्जुग चाहरदीप गया है, क
जल्दी करो, नहीं तो सच मजा
"
विदा हो जाएगा। को
तुम तो
वह बनकर आई हो..."
हाथ पर उठाया तो प्रमिलाबाई विषाया