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जनेन्द्र की पहानिया दनवा भाग
शादी का नवाल नही करूगी । लेकिन..."
"प्रमिला, प्रेम अच्छा है तो क्या एफ भर के लिए हो अच्छा है?" "बड़े बेहया हो जी, तुम "
"मुझ पर से दो व्याह बीत चुके और टूट चुके हैं। इन ने ज्यादा और क्या तुम्हारी आंखें खोल सकता है !"
"इसी से मेरा निश्चय है कि यह व्याह होगा और नहीं टूटेगा । मैं सब जैमी नही हू । मेरा इम्तहान ही है यह विवाह । इसीलिए तो सामने आती हू कि मुझे भी देखना है, वह क्या है, जिसके कारण तुम इधर से उधर भागते हो । वे गौरतें अनजान रही होगी । मैं..."
"तुम जानती नहीं हो विवाह को । वह घेरे मे बचना है । तुग गयो बंधना चाहती हो, में यही नहीं समझ पाता । इसीलिए कि बताने को कोई बच्चे का वाप पाम वधा हाजिर रहे 1" ___ "देखती हू , तुम वाप बन सकते हो, रह नहीं सगते । भयो यही
"प्रेम में अगर प्रकृतिवरा कोई पिता बन जाता है, तो इसमें समाज का क्या इजारा है ? लेफिन समाज को सातिर वाहा जाता है कि एक बाप घर के जूए मे जुता हुमा मौजूद रहे ! छोडो "छोटो, यह सच उकोसले है और तुम इस कदर सूबगूरत हो कि..."
कह कर उगने सम्मानपूर्वक मागता या हाय उठाया और अपने सामने मेज पर रख लिया । उग पर फिर अपना हाय रन पर पाया, फिर दबोचा, कहा, "यू पार वन्डरफुल, प्रमिला ! (नुम विलक्षात प्रमिला "
मानो प्रमिला ने युर अनुभव नहीं किया। वह उसी तरह घिर बेटी रही।
इनने में ग्रार्डर का सामान लिए प्रातारा दीना । हाय मेज गेट गए और यानें उन पनेपन के स्तर में अलग था ।
नाने-पीने के बीच में प्रमिला ने पूछा, "तुम्हें गिनने में