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विच्छेद
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है । कह दीजिए उनसे, कि उनका हक है कि किशोर को या किसी को अपने घर से हमेशा के लिए बाहर कर सकते है और मैं इसमे कोई नही हू, और मुझे कोई एतराज नही है । इससे आगे — मुझसे कुछ न कहा जाए, आप भी न कहे ।"
"तो वह तुम्हारी जिन्दगी मे नही है ?"
सविता ने सामने बैठे उन बुजुर्ग की ग्राखो मे देखते हुए कहा, "आपने दुवारा पूछा है । दोवारा कहती हू, नही है ।"
बुजुर्ग ठिठक रहे । फिर उवर कर वोले
" तो यह सब क्या बखेडा है ? मैं केशव से कहूगा, सबसे कहूगा कि नाहक क्यो तूफान खडा कर रखा है। बेटी, तुम घबरानो नही, सक ठीक हो जाएगा ।"
सविता ने कहा, "क्या ठीक हो जाएगा ?"
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"अपवाद यह जड़ मूल तक न रहेगा । और तुम्हारा मान पहली की तरह प्रतिष्ठित रहेगा ।"
"मेरा मान ।" कहा और धीमे से वह हसी । बेहद कड़वी वह हसी थी ।
बुजुर्ग के मन मे वह हसी कौती-सी चली गई । एकाएक बोले, "क्यो बेटा, सवि ! क्या बात है। "कुछ नही ।"
"क्यो, मैं तुमको कहता हूँ कि किशोर की बात जो अव यह साफ हो गई है तो तुम्हारी प्रतिष्ठा कुललक्ष्मी की तरह होगी और में इसका जामिन वनता हू |"
सविता खिला खिला पडी । ऐसी तीखी वेधक हमी का सामना उन वुजुर्ग को कब करना पडा था ? बोले, "क्यो, तुमको विश्वास नहीं होता ?"
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"उस सवको आवश्यकता नही है, उपाध्याय जी । मुझको तो अलग रहना है ।"