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जैनेन्द्र की कहानिया दसवा भाग
सकता है, अभी बैठना होगा । मनोरमा बरामदे मे जो स्टूल बताया गया, उस पर शान्ति के साथ बैठकर इन्तजार करने लगी ।
आजकल अनिश्चित दिन है और शासन को कसा रहना पडता है । वर्मा साहब यू भी परायण और योग्य समझे जाते हैं। वह काफी सवेरे उठ जाते है और तैयार होकर मेज पर श्रा जाते हैं । श्राते ही एक कप चाय का लेकर दो ढाई घंटे तक लगातार काम करते है । इस काम के बीच उन्हे व्याघात पसन्द नही होता । इसीलिए कहला दिया गया कि डेउ घटा लग सकता है |
लेकिन बीच में घटी बजाकर प्रर्दली से उन्होने पूछा, "आए है जो साहब, बैठे है न ? उन्हे कोई जल्दी तो नहीं है ?"
"जी, नही बैठी है ।"
"कौन ? स्त्री है ?"
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"जी, हुजूर
"तो" अभी जरा बैठेंगी। माफी माग लेना कहा विठाया है " बैठक मे बैठेगी।"
अर्दली ने विशेष चिन्ता न की । और बरामदे मे स्टूल पर मनोरमा बैठी रहने दी गई ।
थोडी देर डी० एम० श्रपना काम करते रहे । फिर हाथ उठाकर कुर्सी के पीछे टिके, अगडाई ली और एकाएक मडे होकर चले और अपनी वैठक मे प्राए । बैठक मे कोई न था । लोटकर उसी मेज पर आए और घटी दी । अर्दली के थाने पर उसे उन्होने शेप से देखा और वहा, "उन्हें भेज दो ।"
मनोरमा आकर झुकी और सामने की एक कुर्सी पर बैठ गई । "कहिए, मैं क्या कर सकता हू थापके लिए ?"
मनोरमा ने उठकर रेशमी विन से लिपटा वह पैक्टि डी० एम० के सामने किया ।
डी० एम० ने आभार मानते
हुए
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पैकिट लिया और मेज पर एक